Bendur festival: बेंदूर/बेंदुरु” दक्षिण भारत, खासकर कर्नाटक और महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र का पारंपरिक त्योहार है, जो मुख्यतः मवेशियों (गाय, बैल आदि) के सम्मान में मनाया जाता है। यह कृषि से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पर्व है। आइए जानते हैं, इस खूबसूरत और अनूठे त्योहार के बारे में विस्तार से:
bendur festival: किसानों की श्रद्धा, मवेशियों का सम्मान
भारत कृषिप्रधान देश है और यहाँ खेतों में काम करने वाले मवेशी—खासतौर पर बैल और गाय—किसानों के सबसे बड़े साथी माने जाते हैं। खेती के काम में जानवरों के सहयोग, उनकी मेहनत और उनकी उपयोगिता को मान्यता और सम्मान देने के लिए हर साल श्रावण महीने में बेंदुर त्योहार हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

बेंदुर का महत्व
बेंदुर (Bendur या Bendur) शब्द संस्कृत के ‘बन्धुर’ से निकला है, जिसका अर्थ होता है ‘मित्र’। किसान अपने पशुओं को सच्चा मित्र मानते हैं
और उनके प्रति प्रेम और आभार जताने के लिए यह पर्व मनाते हैं।
यह त्योहार जुलाई-अगस्त (श्रावण मास) में, मुख्य रूप से पहली या दूसरी सोमवार को मनाया जाता है।

प्रमुख परंपराएँ और रस्में
कई क्षेत्रों में पशु मेले भी लगाए जाते हैं, जहाँ खरीदार और विक्रेता मिलते हैं
और मवेशियों का सौदा भी किया जाता है।

कृषि संस्कृति और पशुधन का सम्मान
बेंदुर का त्योहार किसानों के जीवन में मवेशियों की आवश्यकता और उनके योगदान को खुले दिल से स्वीकार करता है।
इससे बच्चों और युवाओं में पशु-प्रेम, जिम्मेदारी और प्रकृति के साथ सामंजस्य का भाव पैदा होता है।
साथ ही, यह त्योहार सामाजिक एकता और साझा संस्कृति को भी मजबूत करता है।

आधुनिक युग में बेंदुर
वर्तमान समय में भी बेंदुर की परंपराएँ जीवित हैं, हालांकि आज पशु पालन में आधुनिकता आ गई है,
मगर गाँवों में इस त्योहार की महिमा अब भी बनी हुई है।
कई जगह पर्यावरण जागरूकता के साथ पशुओं की देखभाल और खानपान पर भी ध्यान दिया जाता है।
बेंदुर त्योहार न केवल मवेशियों के प्रति प्रेम और कृतज्ञता का उत्सव है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक परंपरा, कृषि जीवन और समुदाय की एकजुटता का प्रतीक भी है। आइए, इस बेंदुर पर्व पर पशु-पक्षियों और प्रकृति के सभी साथी जीवों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाएँ और उनकी देखभाल के महत्त्व को समझें।




















