NETWORKING
April 29, 2024 2024-04-29 16:00NETWORKING
Introduction : NETWORKING
Computer Network: Network आपस में जुड़े स्वतंत्र कम्यूटरों का समूह है जो आपस में डाटा और सूचनाओं का आदान प्रदान करने में सक्षम होते है। नेटवर्क का उद्देश्य सूचना, संसाधनों तथा कार्यो की साझेदारी करना होता है। इसमें किसी एक कम्यूटर का पूरे नेटवर्क पर नियंत्रण नही होता है।
किसी नेटवर्क में संचार को स्थापित करने के लिए चार चीजों की आवश्यकता पड़ती है-
- प्रेषक (Sender)
- माध्यम (Medium)
- प्राप्तकर्ता (Receiver)
- भेजने और प्राप्त करने की कार्य विधि (Protocol)
नेटवर्क के लाभ (Benefits of Network):
- विभिन्नComputer द्वारा आपस में सूचनाओ का आदान-प्रदान
- डाटा, सूचना और मँहगे उपकरणों का साझा उपयोग
- सूचना का तेज गति और शुद्धता (Speed & Accuracy) के साथ आदान-प्रदान
- कम खर्च में डाटा का आदान प्रदान
नेटवर्क से सम्बंधित शब्द (Word Related Network):
नोड (Node): नेटवर्क से जुड़े विभिन्न Computers का अंतिम बिन्दु या टर्मिनल जो नेटवर्क के संसाधनों (Resources) का उपयोग कर सकते है, नोड कहलाता है। ‘OR’किसी Network में Server से सूचना प्राप्त करने वाले Computer को Node कहते है। इसे Client, Guest के नाम से भी जाना जाता है।
सर्वर (Server): नेटवर्क के किसी एक नोड को संचार व्यवस्था बनाए रखने तथा साझा संसाधनों के उपयोग में नियंत्रित करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, जिसे सर्वर कहते है। ‘OR’किसी Network में Node को सूचना देने वाले Computer को Server कहते है। इसे Host के नाम से भी जाना जाता है।
बैंडविड्थ_(Bandwidth): डाटा के संचारण (Transmission) के समय माध्यम में उपलब्ध उच्चतम और निम्नतम आवृति (Higher and Lower Frequency) की सीमा बैंडविड्थ कहलाती है। बैंडविड्थ जितना अधिक होगा, डाटा का संचारण उतना ही तीव्र होगा।
बॉड़ (Baud): यह डाटा संचारण (Transmission) की गति को मापने की इकाई है। इसे बिट प्रति सेकण्ड (BPS-Bit Per Second) भी कहा जाता है।
ब्रॉड बैण्ड (Broad Band): इस सेवा का उपयोग तीव्र गति से अधिक डाटा के संचारण के लिए किया जाता है। इसमें डाटा स्थानान्तरण की गति एक मिलियन (दस लाख) बॉड या इससे अधिक हो सकती है।
संचार की विधियाँ (Methods of Communication):
- सिम्पलेक्स विधि (Simplex Method):- इसमें डाटा व सूचनाओं का एक ही दिशा में संचारण होता है। इसमें सूचना प्राप्त होना सुनिश्चित नहीं होता है। जैसे-रेडियो का प्रसारण
- अर्ध डुप्लेक्स विधि (Half Duplex Method):- इसमें सूचनाओं का संचारण दोनो
दिशाओं में किया जा सकता हैं, पर एक बार में एक ही दिशा में सूचनाएं जा सकती हैं। जैसे –Walky talky
- पूर्णडुप्लेंक्सविधि (Full Duplex Method):- सूचना तथा डाटा को दोनों दिशाओं में
एक साथ प्रेषित किया जा सकता है। इसमें चार तार की जरुरत पड़ती है। जैसे-Telephone
संचार के माध्यम (Medium of Communication):
किसी Network में एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर तक डाटा के संचार के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता होती है, इस माध्यम को कम्युनिकेशन लाइन या डाटा लिंक कहते है। ये दो प्रकार के होते है।
1 Guided or Wire Media
2 Unguided or Wireless Media
- गाइडेड मीडिया या वायर्ड तकनीकी (Guided or Wired Media): गाइडेड मीडिया (Media) में डाटा, सिग्नल तारों (Wires) के माध्यम से प्रवाहित होते हैं। इन तारों के द्वारा डाटा का संचार किसी विशेष पथ से होता है। ये तार, कॉपर, टिन या सिल्वर के बने होते हैं। Wire Media सामान्यतः निम्न प्रकार के होते है।
- ईथरनेट केबल या ट्विस्टेड पेयर केबल (Ethernet Cable or Twisted Pair Cable): इस प्रकार के केबल में तार आपस में उलझे होते हैं, जिसके ऊपर एक कुचालक पदार्थ तथा एक अन्य परत का बाहरी आवरण जिसे जैकेट कहते है, लगा होता है। दो में से एक तार सिग्नल्स को प्राप्तकर्ता तक पहुँचाने के लिए तथा दूसरा अर्थिंग के लिए उपयोग किया जाता है। इस केबल का प्रयोग छोटी दूरी में डाटा संचार के लिए करते है। इस तार का प्रयोग लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) में किया जाता है।
B- को एक्सियल केबल (Co-Axial Cable): इस केबल के द्वास उच्च आवृत्ति वाले डाटा को संचारित किया जाता है। यह केबल उच्च गुणवत्ता का संचार माध्यम है। इस तार को जमीन या समुद्र के नीचे से ले जाया जाता है। इस केबल के केन्द्र में ठोस तार होता है,
जो कुचालक तार से घिरा होता है। इस कुचालक तार के ऊपर तार की जाली बनी होती है, जिसके ऊपर फिर कुचालक की परत होती हैं। यह तार अपेक्षाकृत महँगा होता है, किन्तु इसमें अधिक डाटा के संचार की क्षमता होती है। इसका प्रयोग टेलीविजन नेटवर्क में किया जाता है।
C- फाइबरऑप्टिकलकेबल (Fiber Optical Cable): यह एक नई तकनीक है, जिसमें धातु के तारों की जगह विशिष्ट प्रकार के ग्लास या प्लास्टिक के फाइबर का उपयोग डाटा संचार के लिए करते हैं। ये केबल हल्की तथा तीव्र गति वाली होती हैं। इस केबल का प्रयोग टेलीकम्युनिकेशन और नेटवर्किंग (Networking) के लिए होता है। और निर्देशन सात
- अनुगाइडेड मीडिया या वायरलेस तकनीकी (Unguided or Wireless Media):
केबल के महेंगे होने तथा इसके रख-रखाव का खर्च अधिक होने के कारण डाटा संचार के लिए वा इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है। अनगाइडेड मीडिया में, डाटा का प्रवाह बिना तारों वाले संचार के लिए माध्यमों के द्वारा होता है। इन मीडिया में डाटा का प्रवाह तरंगों के माध्यम से होता है। चूँकि इस माध्यम में डाटा का संचार तरंगों के द्वारा होता है, इसलिए इन्हे अनगाइडेड मीडिया या वायरलेस तकनीक कहा जाता है।
A–रेडियोवेव ट्रांसमिशन (Radiowave Transmission): जब दो टर्मिनल रेडियो आवृत्तियों (Radio frequencies) के माध्यम से सूचना का आदान-प्रदान करते है तो इस प्रकार के संचार को रेडियोवेव ट्रांसमिशन कहा जाता है। ये रेडियो तरंगे सर्वदिशात्मक (Omni directional) होती है तथा लम्बी दूरी के संचार के लिए प्रयोग की जा सकती है।
B-माइक्रोवेव ट्रांसमिशन (Microwave Transmission): इस सिस्टम में सिग्नल्स खुले तौर
पर (बिना किसी माध्यम के) रेडियो सिग्नल्स की तरह संचारित होते हैं। इस सिस्टम में सूचना का आदान प्रदान आवृत्तियों के माध्यम से किया जाता है। माइक्रोवेव इलेक्ट्रोमैग्नेटिक (Electromagnetic) तरंगे होती है जिनकी आवृत्ति लगभग 0.3 GHZ से 300 GHZ के बीच में होती है। hot
C इन्फ्रारेड वेव ट्रांसमिशन (Infrared Wave Transmission): इन्फ्रारेड वेव (Infrared Wave) छोटी दूरी के संचार के लिए प्रयोग में लाए जाने वाली उच्च आवृत्ति की तरंगें होती है। ये तरंगें ठोस ऑब्जेक्ट (Solid Object) जैसे कि दीवार आदि के आर-पार नही जा सकती है। मुख्यतया, ये TV रिमोट, वायरलेस स्पीकर आदि में प्रयोग की जाती है।
D- सेटेलाइट संचार (Satellite Transmission): सेटेलाइट संचार (Satellite Communication) तीव्र गति का डाटा संचार माध्यम है। यह लम्बी दूरी के संचार के लिए सबसे आदर्श संचार माध्यम होता है। अन्तरिक्ष में स्थित सेटेलाइट (उपग्रह) को जमीन पर स्थित स्टेशन से सिग्नल भेजते हैं तथा सेटेलाइट उस सिग्नल का विस्तार करके उसे किसी दूर स्थित दूसरे
स्टेशन पर वापस भेज देता है। इस सिस्टम के द्वारा एक बड़ी मात्रा में डाटा को अधिकतम दूरी त भेजा जा सकता है। इसका प्रयोग फोन, टीवी तथा इन्टरनेट आदि के लिए सिग्नल्स भेजने में होत है।
Network के प्रकार (Types of Network): भौगोलिक (Geographical) क्षेत्र (Area) के आधार प Network को तीन भागों में बांटा गया है।
- LAN (Local Area Network)
- MAN (Metropolitan Area Network)
- WAN (Wide Area Network)
LAN (Local Area Network): यह एक ऐसा नेटवर्क है जिसका प्रयोग दो या दो से अधिक कंप्यूटर को जोड़ने के लिए किया जाता है। लोकल एरिया नेटवर्क स्थानीय स्तर पर काम करने वाला नेटवर्क है इसे Short में LAN कहा जाता है। यह एक ऐसा Computer नेटवर्क है जो स्थानीय इलाकों जैसे- घर, कार्यालय, या भवन समूहों को कवर करता है।
विशेषतायेः–
यह एक कमरे या एक बिल्डिंग तक सीमित रहता है। Wiri • इसकी Data Transfer Speed अधिक होती है।
• इसमें बाहरी नेटवर्क को किराये पर नहीं लेना पड़ता है।
MAN (Metropolitan Area Network): यह एक ऐसा उच्च गति वाला नेटवर्क है जो आवाज डाटा और इमेज को 200 मेगाबाइट प्रति सेकंड या इससे अधिक गति से डाटा को 100 से 200 कि मी. की दूरी तक ले जा सकता है। यह LAN से बड़ा नेटवर्क होता है। इस नेटवर्क के द्वारा एक शहर से दूसरे शहर को जोड़ा जाता है। बड़ा होता है। Cable Network
विशेषतायेः–
इसका दायरा (Area)बड़ा होता है !
• इसकी गति उच्च होती है।
• यह 100-200 कि.मी. की दूरी तक फैला रहता है।
Telephone
WAN (Wide Area Network): यह क्षेत्रफल की दृष्टि से बड़ा नेटवर्क होता है। यह नेटवर्क न केवल एक बिल्डिंग, न केवल एक शहर तक सीमित रहता है बल्कि यह पूरे विश्व को जोड़ने का कार्य करत है अर्थात् यह सबसे बड़ा नेटवर्क होता है इसमें डाटा को सुरक्षित भेजा और प्राप्त किया जाता है। विशेषतायेः-
• इसमें डाटा को उपग्रह (Satellite) के द्वारा भेजा और प्राप्त किया जा सकता है।
• यह सबसे बड़ा नेटवर्क होता है।
• इसके द्वारा हम पूरी दुनिया में डाटा ट्रान्सफर कर सकते है।
नेटवर्क टोपोलॉजी (Network Topology):
कम्प्यूटर नेटवर्क में कम्प्यूटरों को आपस में जोड़ने के तरीके को टोपोलॉजी (Topology) कहते हैं। किसी टोपोलॉजी के प्रत्येक कम्प्यूटर, नोड या लिंक स्टेशन कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में, टोपोलॉजी
नेटवर्क में कम्प्यूटरों को जोड़ने की भौगोलिक व्यवस्था होती है। इसके द्वारा विभिन्न कम्प्यूटर एक- दूसरे से परस्पर सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं। नेटवर्क टोपोलॉजी निम्नलिखित प्रकार की होती है।
- बस टोपोलॉजी (Bus Topology)
- स्टारटोपोलॉजी (Star Topology)
- रिंगटोपोलॉजी (Ring Topology)
- मेशटोपोलॉजी (Mesh Topology)
- ट्री टोपोलॉजी (Tree Topology)
बस टोपोलॉजी (Bus Topology): इस टोपोलॉजी में एक लम्बे केबल से सभी Computer आपस में जुड़े होते हैं। । इस नेटवर्क का इन्स्टॉलेशन (Installation) छोटा होता है
लाभ
इसमें नए नोड जोड़ना अथवा पुराने नोड हटाना बहुत आसान होता है।
किसी एक कम्प्यूटर के खराब होने पर सम्पूर्ण नेटवर्क प्रभावित नही होता। इसकी लागत बहुत कम होती है।
हानि
• इसमें खराब हुए नोड का पता लगाना कठिन होता है।
• अधिक संख्या में नोड जुड़ जाने से यह सिस्टम स्लो / धीमा हो जाता है।
• यदि मुख्य केबल में Error आती है तो सम्पूर्ण नेटवर्क शट-डाउन हो जाता है।
स्टार टोपोलॉजी (Star Topology): इस टोपोलॉजी के अन्तर्गत एक होस्ट (Host/Server) कम्प्यूटर होता है, जिससे विभिन्न लोकल कम्प्यूटरों (नोड) को हब (Hub) के द्वारा सीधे जोड़ा जाता है।
लाभ
• यदि कोई लोकल नोड कम्प्यूटर खराब हो जाए, तो शेष नेटवर्क प्रभावित नही होता। इस स्थिति में खराब हुए नोड का पता लगाना आसान हो जाता है।
• एक कम्प्यूटर को होस्ट कम्प्यूटर से जोड़ने में कम लागत आती है।
हानि
• बस टोपोलॉजी की तुलना में अधिक केबल की आवश्यकता होती है।
• यदि होस्ट या सर्वर फेल हो जाए, तो पूरा नेटवर्क फेल हो जाता है।
रिंग टोपोलॉजी (Ring Topology): रिंग टोपोलॉजी में कोई हब या लम्बी केबल नही होती। सभी कम्प्यूटर एक गोलाकार आकृति के रुप में केबल द्वारा एक के बाद एक जुड़े होते है। इसमें किसी भी एक कम्प्यूटर के खराब होने पर सम्पूर्ण रिंग बाधित होती है। यह गोलाकार आकृति सर्कुलर नेटवर्क भी कहलाती है।
लाभ
• इसमें छोटे केबल की आवश्यकता होती है।
यह स्टार टोपोलॉजी से अधिक विश्वसनीय है, क्योंकि यह किसी एक कम्प्यूटर पर निर्भर नही होता है।
हानि
• इसकी गति नेटवर्क में लगे कम्प्यूटरों पर निर्भर करती है।
• सिग्नल कमजोर होने पर सम्पूर्ण नेटवर्क को प्रभावित करते है।
मेश टोपोलॉजी (Mesh Topology): इस टोपोलॉजी का प्रत्येक कम्प्यूटर, नेटवर्क में जुड़े अन्य सभी कम्प्यूटरों से सीधे जुड़ा होता है। इसी कारण से इसे Point-to-Point नेटवर्क या Completely Connected नेटवर्क भी कहा जाता है। इसमें डाटा के आदान प्रदान का प्रत्येक निर्णय कम्प्यूटर स्वयं ही लेता है।
लाभ
• ये टोपोलॉजी अधिक दूरी के नेटवर्क के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती है। इस टोपोलॉजी में किसी एक कम्प्यूटर के खराब होने पर पूरा नेटवर्क बाधित नही होता है। हानि
• अधिक केबल लगने के कारण इसकी इन्स्टॉलेशन तथा मेन्टेनेन्स लागत अधिक होता है।
ट्री टोपोलॉजी (Tree Topology):
इस टोपोलॉजी में एक नोड से दूसरी नोड तथा दूसरी नोडसे तीसरी नोड़, किसी पेड़ की शाखाओं की तरह जुड़ी होती है। इसीलिये यह ट्री टोपोलॉजी (Tre: Topology) कहलाती है।
लाभ
• इस टोपोलॉजी में नेटवर्क को आसानी से बढ़ाया जा सकता है।
• यह टोपोलॉजी पदानुक्रम (Hierarchical) डाटा के संचार के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है हानि
• यदि बैकबोन लाइन टूट जाती है तो पूरा नेटवर्क रुक जाता है।
• अन्य टोपोलॉजी की तुलना में इसमें तार बिछाना तथा इसे कॉन्फिगर करना कठिन होता है।
Protocol:
प्रोटोकॉल नियमो का समूह होता है, जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जोड़ने एवं उनके बीच में सूचन के आदान प्रदान के लिए बनाया गया है। प्रोटोकॉल नेटवर्क से जुड़े डिवाइस के बीच में डाटा स्थान्तरण नियंत्रित करता है, यदि समस्या आती है तब Error Message दर्शाता है साथ ही स्थान्तर की प्रक्रिया के अनुसार डाटा को संभालता है। एक डिवाइस से डाटा कैसे जाना चाहिए तथा दूस डिवाइस को डाटा कैसे प्राप्त करना है, यह प्रोटोकॉल निश्चित करता है। “A protocol is a set of rules to control the data transfer between the devices” Types of Protocols:
- PCP (Transmission Control Protocol)
- IP (Internet Protocol)
- ARP (Address Resolution Protocol)
- RIP (Routing Information Protocol)
- ICMP (Internet Control Message Protocol)
- SMTP (Simple Mail Transfer Protocol)
- FTP (File Transfer Protocol)
- SNMP (Simple Network Management Protocol)
- PPP (Point to Point Protocol)
- HTTP (Hyper Text Transfer Protocol)
TCP (Transmission Control Protocol): TCP दो कंप्यूटर के बीच डेटा या इनफार्मेशन के आदान- प्रदान के लिए कनेक्शन स्थापित करता है एवं इसे मेंटेन करता है। यह प्रोटोकॉल कनेक्शन ओरिएंटेड (Oriented) प्रोटोकॉल कहलाता है।
IP (Internet Protocol): यह इंटरनेट पर दो कंप्यूटर के बीच डेटा ट्रांसफर के लिए Sender कंप्यूटर के डेटा को छोटे-छोटे डाटा ब्लॉक जिन्हे IP पैकेट कहा जाता है, में विभाजित करता है इसके बाद यह प्रत्येक IP पैकेट की एड्रेसिंग करता है और उनकी रूटिंग करता है अंत में Receiver कंप्यूटर के लिए सभी IP पैकेट्स की Reassembling करता है।
ARP (Address Resolution Protocol): यह किसी IP एड्रेस को लोकल नेटवर्क के लिए मीडिया एक्सेस कण्ट्रोल लेयर एड्रेस (Media Access Control Layer) से सम्बन्धित (Related) करता है। हम तक पहुप ted) कर
RIP (Routing Information Protocol): यह प्रोटोकॉल दो कंप्यूटर के मध्य Quick Root का पता लगाता है।
ICMP (Internet Control Message Protocol): यह प्रोटोकॉल इंटरनेट पर कम्युनिकेशन के समय एरर (Error) को हैंडल करता है तथा एरर को IP डाटाग्राम के साथ Sender को भेजता है।
SMTP (Simple Mail Transfer Protocol): यह प्रोटोकॉल इंटरनेट पर E-mail के आदान प्रदान को कण्ट्रोल करता है।
FTP (File Transfer Protocol): यह प्रोटोकॉल इंटरनेट पर File को Upload and Download करने की सुविधा देता है।
SNMP (Simple Network Management Protocol): इसका प्रयोग TCP/IP को कण्ट्रोल करने के लिए किया जाता है। यह प्रोटोकॉल एडमिनिस्ट्रेटर (Administrator) को नेटवर्क डिवाइस से कनैक्ट करने की सुविधा देता है।
PPP (Point to Point Protocol): PPP नेटवर्क के लिए डायल अप कनेक्शन उपलब्ध करता है सामान्यता PPP का प्रयोग इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर द्वारा अपने ग्राहकों को इंटरनेट से कनेक्ट करने के लिये किया जाता है।
HTTP (Hyper Text Transfer Protocol): यह प्रोटोकॉल किसी Open हो रहे Web Site के Format & Speed को तय करता है कि Site किस प्रकार से तथा कितने Speed में Open होगा।
नेटवर्किंग युक्तियाँ (Networking Device): एनटनादा होता है
1.रिपीटर (Repeater): ये ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होते है जो निम्न स्तर (Low level) के सिग्नल्स को प्राप्त करके उन्हें उच्च स्तर का बनाकर वापस भेजते हैं इस प्रकार सिग्नल्स लम्बी दूरियों को तय कर सकते हैं। रिपीटर्स (Repeaters) का प्रयोग कमजोर पड़ चुके सिग्नल्स एवं उनमें होने वाली समस्याओं से बचाता है। इनकी उपयोगिता उस समय अधिक होती है, जब कम्प्यूटरों को आपस में जोंड़ने के लिए काफी लम्बी केबल की आवश्यकता होती है।
2.हब (Hub): इसका प्रयोग ऐसे स्थान पर किया जाता है जहाँ नेटवर्क की सभी केबल मिलती हैं। एक प्रकार का रिपीटर होता है जिसमें नेटवर्क चैनलों को जोडने के लिए पोर्ट्स लगे होते हैं। हब (Hub) में कम्प्यूटरों को जोड़ना अथवा हबों को आपस में जोड़ना या हटाना बहुत सरल होता है।
- नेटवर्क इंटरफेस कार्ड (NIC- Network Interface Card): यह एक ऐसी डिवाइस है जो कम्प्यूटर को नेटवर्क से जोड़ता है तथा डाटा का आदान-प्रदान संभव बनाता है।
- गेटवे (Gateway): यह एक ऐसी डिवाइस है, जिसका प्रयोग दो विभिन्न नेटवर्क प्रोटोकॉल को जोड़ने के लिए किया जाता है। इन्हें प्रोटोकॉल परिवर्तक (Protocol Converters) भी कहते हैं। ये फायरवॉल की तरह कार्य करते हैं।
- स्विच (Switch): यह एक ऐसी डिवाइस है जो विभिन्न कम्प्यूटरों को एक लैन (LAN) में जोड़ते है। स्विच (Switch) को हब के स्थान पर उपयोग किया जाता है। हब तथा स्विच के मध्य एक महत्वपूर्ण अन्तर यह है, कि हब स्वयं तक आने वाले डाटा को सभी Ports तक पहुँचाता है जबकि Switch केवल उसके गन्तव्य (Destination) स्थान तक भेजता है।
- राउटर (Router): इसका प्रयोग नेटवर्कों में डाटा को कहीं भी भेजने में करते हैं, इस प्रकिया को राउटिंग कहते हैं। राउटर (Router) एक जंक्शन की तरह कार्य करते हैं। बड़े नेटवर्क में एक से अधिक रुट होते हैं, जिनके जरिए सूचनाएँ अपने गन्तव्य स्थान तक पहुँचायी जाती हैं। ऐसे में राउटर्स यह तय करते है, कि किस सूचना को किस रास्ते से उसके गन्तव्य स्थान तक पहुँचाना है।
- ब्रिज (Bridge): ये छोटे नेटवकों को आपस में जोड़ने के काम आते है, ताकि ये आपस में जुड़कर एक बड़े नेटवर्क की तरह काम कर सकें। ब्रिज (Bridge) एक बड़े या व्यस्त नेटवर्क को छोटे हिस्सों में बॉटने का भी कार्य करता हैं।
- मॉडम (Modem): यह Modulator-Demodulator का संक्षिप्त रुप है। कम्प्यूटर डिजिटल संकेत उत्पन्न करता है। जबकि संचार माध्यम पर केवल एनालॉग संकेत भेजा जा सकता है। मॉडेम वह युक्ति है जो कम्प्यूटर के डिजिटल सेकेतों (Digtial Signals) को एनालॉग संकेत में बदलकर संचार माध्यम पर भेजता है तथा आने वाले एनालॉग संकेतो को डिजिटल संकेत में बदलकर उसे कम्प्यूटर के प्रयोग के योग्य बनाता है।
कम्प्यूटर नेटवर्किंग मॉडल (Computer Networking Model): Act कम्प्यूटर नेटवर्क के मुख्यतः दो मॉडल होते हैं-
नेटवर्क (Client/Server Network): ऐसा नेटवर्क, जिसमें एक कम्प्यूटर सर्वर तथा बाकी क्लाइंट की तरह कार्य करें, क्लाइण्ट / सर्वर नेटवर्क कहलाता है। क्लाइण्ट कम्प्यूटर, सर्वर से किसी सर्विस के लिए रिक्वेस्ट करता है तथा सर्वर उस रिक्वेस्ट के लिए उचित रिस्पॉन्स देता है।
पियर – टू– पियर नेटवर्क (Peer-to-Peer Network): यह दो से अधिक ऐसे कम्प्यूटरों का नेटवर्क है। जो आपस में कम्युनिकेशन के लिए एक जैसे प्रोग्राम का उपयोग करते हैं। इसे P2P नेटवर्क भी कहा जाता है।
ओपन सिस्टम इन्टरकनेक्शन (Open System Interconnection): यह Computer Network की Designing के लिये विकसित Layers है। जिसमे 7 Layer होते है। इसे ISO ने 1984 में Develop किया था।
- Physical Layer
- Data Link Layer
- Network Layer
- Transport Layer
- Section Layer
- Presentation Layer
- Application Layer