Makar Sankranti 2025 : मकर संक्रांति का पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस दिन भगवान सूर्य की पूजा का विधान है। जातक इस दिन पर सूर्यदेव की पूजा करते हैं
और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं। इसके अलावा यह दिन वसंत ऋतु की शुरुआत और नई फसलों
की कटाई का प्रतीक है। इस शुभ दिन पर लोग गंगा यमुना नर्मदा और शिप्रा नदी में पवित्र स्नान भी करते हैं।

उत्तरी भारत और पूर्व के कुछ हिस्सों में फसल के मौसम की शुरुआत के रूप में
इस त्योहार को मनाया जाता है। वहीं इस पवित्र दिन सूर्य मकर राशि में
प्रवेश करते हैं। इसे सूर्य की यात्रा की शुरुआत का संकेत माना जाता है।
मकर संक्रांति का इतिहास
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत और पुराण दोनों में मकर संक्रांति के
त्योहार के बारे में उल्लेख किया गया है। इस उत्सव की शुरुआत करने
का श्रेय वैदिक ऋषि विश्वामित्र को दिया जाता है। वहीं महाभारत में उल्लेख है
कि वनवास के दौरान पांडवों ने मकर संक्रांति मनाई थी। इस दिन को लेकर कई
कथाएं प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता है, एक बार बार कपिल मुनि पर
भगवान इंद्र के घोड़े चोरी करने का झूठा आरोप लगा दिया गया था।
इस बात से क्रोधित होकर ऋषि ने राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को भस्म होने
का श्राप दे दिया था, जब उन्होंने अपनी करनी की क्षमा मांगी, तब कपिल मुनि
का गुस्सा शांत हुआ और उन्होंने इस श्राप को खत्म करने का एक
उपाय बताया कि वे देवी गंगा को पृथ्वी पर किसी भी तरह लेकर आएं।
इसके बाद राजा सगर के पोते अंशुमान और राजा भगीरथ की कड़ी तपस्या से
प्रसन्न होकर मां गंगा प्रकट हुईं। मान्यताओं अनुसार, जब राजा सगर के 60 हजार
पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी, तभी से मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।
मकर संक्रांति पूजा नियम
सुबह सूर्योदय से पहले उठें और पवित्र स्नान करें।
इस दिन पवित्र नदी गंगा में स्नान करने का भी विधान है।
भगवान सूर्य को अर्घ्य दें और उनके मंत्रों का जाप करें।
भक्त देवी गंगा के प्रति अपना आभार व्यक्त करें।
इस पवित्र दिन पर जरूरतमंद और गरीब लोगों की मदद करें।
ब्राह्मणों को भोजन कराएं और ऊनी वस्त्रों के साथ दक्षिणा दें।
हवन और यज्ञ करने के लिए भी यह शुभ दिन है।
जितना हो सके इस दिन धार्मिक कार्यों से जुड़ा रहना चाहिए।
मकर संक्रांति मुख्य रूप से किसानों के लिए विशेष महत्व रखती है।
क्योंकि यह किसानों के घर नई फसल के आगमन का उत्सव माना जाता है।
इसे विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
जैसे कि पंजाब में लोहड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, असम में भोगाली बिहू
और गुजरात व राजस्थान में पतंग उड़ाने का उत्सव भी कहा जाता है।












