बिहार चुनाव महागठबंधन : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले विपक्षी महागठबंधन में सीट बंटवारे और सहयोगी दलों के बीच चल रही खींचतान ने राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया है।

इस गठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, वाम दल और वीआईपी जैसे पार्टियां एक साथ हैं, लेकिन सीटों पर आपसी टकराव महागठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े कर रहे हैं। इस संकट के दौरान कांग्रेस नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को संकटमोचक के रूप में पटना भेजा गया है ताकि वे डैमेज कंट्रोल करें और गठबंधन को चुनावी मैदान में मजबूत बनाएँ।
महागठबंधन की मंज़िल पर कांटें
महागठबंधन के भीतर करीब 9 से 11 सीटों पर घटक दलों के कैंडिडेट आमने-सामने हैं। इन सीटों पर आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों के प्रत्याशी एक-दूसरे के विरुद्ध चुनाव लड़ने वाले हैं। इससे वोट बंटवारा होगा और एनडीए को लाभ मिल सकता है। सीट बंटवारे पर लंबी चर्चा के बाद भी सभी दल संतुष्ट नहीं हैं, जिससे गठबंधन की छवि कमजोर हो रही है।
अशोक गहलोत का पटना दौरा और डैमेज कंट्रोल
- संकट के बीच कांग्रेस ने अशोक गहलोत को पटना भेजकर गठबंधन में शांति बहाल करने का प्रयास किया है।
- गहलोत ने तेजस्वी यादव से महत्वपूर्ण बैठक की और बातचीत के जरिए विवादित सीटों पर सहमति
- बनाने की कोशिश की। उनकी कोशिश है कि 2-4 विवादित सीटों को छोड़कर बाकी सभी पर महागठबंधन
- का एकजुट उम्मीदवार हो। अशोक गहलोत ने कहा है कि सबकुछ नियंत्रण में है और गठबंधन मजबूत होगा।
साझा चुनाव प्रचार अभियान पर संकट
महागठबंधन का संयुक्त प्रचार अब तक धीमा पड़ा है, क्योंकि सीट बंटवारे और सहयोगी दलों के मतभेद की वजह से प्रचार को तेज नहीं किया जा सका। कांग्रेस और आरजेडी के चुनावी वादे में भी विभिन्नता पाई जा रही है, जिससे साझा घोषणा पत्र पर सहमति नहीं बन पा रही। यह राजनीतिक संकट गठबंधन की रणनीतिक सफलता के लिए खतरा बन सकता है।
राजनीतिक मायाजाल और भविष्य की राह
- महागठबंधन को बिहार में एनडीए के मुकाबले मजबूती से खड़ा होना है
- लेकिन अगर जल्द सीट बंटवारे और मतभेदों को नहीं सुलझाया गया तो विपक्षी एकजुटता
- पर प्रश्न चिन्ह लग सकता है। अशोक गहलोत की भूमिका संकटमोचक की तरह है
- जो गठबंधन को चुनावी रणभूमि में फिर से एकजुट कर स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
बिहार चुनाव 2025 महागठबंधन के लिए अब एक महत्वपूर्ण मोड़ है। इस गठबंधन की सफल नेतृत्व और सहयोगी दलों के बीच तालमेल ही इसकी जीत की चाबी है। अशोक गहलोत के डैमेज कंट्रोल प्रयास महागठबंधन को पुनः सशक्त बनाने का प्रयास है, लेकिन क्षेत्रीय दलों के मतभेदों को ठीक से निपटाना बहुत जरूरी होगा। आज का दिन महागठबंधन की स्थिरता के लिए निर्णायक हो सकता है।






