Chhatrapati Shivaji Maharaj Rajyabhishek: भारत का इतिहास कई महान नायकों से भरा है, लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम सुनते ही हर भारतीय का सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है। उनकी वीरता, नेतृत्व और दूरदृष्टि ने कई लोगों को प्रेरणा दी है। लेकिन क्या आप जानते हैं, उनके राज्याभिषेक (राजतिलक) का दिन सिर्फ मराठों के लिए नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए ऐतिहासिक था। आइए जानते हैं उनके राज्याभिषेक की अनसुनी, लेकिन प्रेरक कहानी।
Chhatrapati Shivaji Maharaj Rajyabhishek: राज्याभिषेक की आवश्यकता क्यों पड़ी?
शिवाजी महाराज ने अपने पराक्रम और चतुराई से कई दुर्ग जीते और एक मजबूत मराठा राज्य खड़ा किया। मगर बिना औपचारिक ताजपोशी के, विदेशी और देशी शासकों द्वारा उन्हें “राजा” के रूप में मान्यता नहीं मिल रही थी। आम जनता के लिए भी यह जरूरी था कि उनका राजा औपचारिक रूप से सिंहासन पर आसीन हो।

राज्याभिषेक समारोह की झलक
तारीख: 6 जून, 1674
स्थान: रायगढ़ किला, महाराष्ट्र
मुख्य पुरोहित: गागा भट्ट (काशी के विद्वान ब्राह्मण)
राज्याभिषेक एक भव्य आयोजन था। देशभर से संत, विद्वान, सरदार और जनता रायगढ़ किले पर इकट्ठा हुई थी। गागा भट्ट ने वेद मंत्रों और सात पवित्र नदियों के जल से शिवाजी महाराज का अभिषेक किया। इसी दिन उन्हें “छत्रपति” (राजाओं के राजा) की उपाधि मिली। सोने का सिंहासन, शंखध्वनि और ढोल-नगाड़ों के साथ यह आयोजन ऐतिहासिक बन गया।

राज्याभिषेक का महत्व
शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक से स्वराज्य को औपचारिक पहचान मिली।
उन्होंने “जनता का राजा” बनने का वचन लिया और न्याय, समानता, और धर्म के मार्ग पर चलने की कसम खाई।
यह समारोह भारतीय संस्कृति, परंपरा और गौरव की प्रतीक बन गया।
इससे पूरे देश में नई उम्मीद और आत्मविश्वास जगा।

हम क्या सीख सकते हैं?
नेतृत्व का असली अर्थ है – सबको साथ लेकर चलना और न्याय करना।
कठिन परिस्थितियों में भी अगर इरादे मजबूत हैं, तो सफलता जरूर मिलती है।
अपने अधिकार और पहचान के लिए खड़ा होना हर किसी का हक है।

छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हमें यह सिखाता है
कि सपनों को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत, दूरदृष्टि और दृढ़ संकल्प बेहद जरूरी हैं। आज भी उनका प्रेरणादायक जीवन हमें देशभक्ति, न्याय और नेतृत्व के मूल्य सिखाता है।




















