बिहार चुनाव बागी नेता बिहार चुनाव में रितु जायसवाल, गोपाल मंडल और फतेह बहादुर जैसे बागी नेता नीतीश‑तेजस्वी गठजोड़ को चुनौती दे रहे हैं। चुनावी माहौल में नई हलचल।
बिहार चुनाव 2025: बागी नेता और सियासी समीकरण

#बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की प्रक्रिया जितनी ज़ोरदार है, उतनी ही रोचक इसकी अंदरूनी राजनीति है। इस बार सभी प्रमुख दलों—राजद, जेडीयू और बीजेपी—को अपने ही नेताओं की बगावत का सामना करना पड़ रहा है। टिकट बंटवारे से असंतुष्ट नेताओं ने पार्टी से बगावत करते हुए चुनावी मैदान में निर्दलीय या दूसरे दलों से ताल ठोंक दी है। नतीजतन कई सीटों पर पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के अलावा बागी नेता समीकरण बिगाड़ने में लगे हैं।
बगावत का कारण
चुनावी मौसम में तेजस्वी यादव की आरजेडी, नीतीश कुमार की जेडीयू और भाजपा सभी ओर से टिकट वितरण के बाद असंतुष्ट नेताओं ने बगावत का रास्ता चुना। कई पुराने विधायकों, पूर्व मंत्रियों, प्रदेश पदाधिकारियों को या तो टिकट नहीं मिला या उनकी सीट बदल दी गई, जिससे असंतोष और बगावत का माहौल बना। कुछ बागी अपने दल के प्रत्याशी के खिलाफ मैदान में हैं, तो कुछ नए दलों या निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं।
प्रमुख बागी नेता और उनकी स्थिति
- राजद: इस बार सबसे ज्यादा बगावत राजद में देखने को मिली है। पार्टी ने 38 बागी नेताओं को निष्कासित किया है, जिनमें विधायक फतेह बहादुर सिंह (डेहरी), महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष ऋतु जायसवाल (परिहार) और अन्य प्रमुख नाम शामिल हैं। ये नेता पार्टी की आधिकारिक उम्मीदवार के विरोध में निर्दलीय रूप से चुनाव मैदान में हैं।
- जेडीयू: नीतीश कुमार की पार्टी में भी गोपाल मंडल (गोपालपुर), हिमराज सिंह (कटिहार) समेत 16 नेताओं को निष्कासित किया गया है। वे तत्कालीन पार्टी या सहयोगी दल के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं।
- बीजेपी: भाजपा ने पवन यादव, श्रवण कुशवाहा, उत्तम चौधरी, सूर्य भान सिंह जैसे नेताओं को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए पार्टी से निकाला है। ये बागी उम्मीदवार कुछ सीटों पर एनडीए के लिहाज से खतरा बने हुए हैं।
बागी नेताओं के क्षेत्रीय प्रभाव
बिहार की चुनावी भूगोल में 35 से अधिक सीटें ऐसी हैं, जहां बागियों की उपस्थिति से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। रितु जायसवाल (परिहार), गोपाल मंडल (गोपालपुर), फतेह बहादुर सिंह (डेहरी), मो. गुलाम जिलानी वारसी (कांटी), रामसखा महतो (चेरिया बरियापुर), सरोज यादव (बड़हरा), रेयाजुल हक राजू (बरौली) जैसे बड़े नाम अपने दमखम पर वोट खींच सकते हैं और अपनी पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
सियासी समीकरण-वोटों का बंटवारा
बागी नेता ऐसे क्षेत्रीय प्रभावशाली चेहरे हैं,
जिनका अपने पुराने दल के वफादार वोट बैंक पर पकड़ है।
वे अगर हजारों वोट भी खींच लेते हैं,
तो जीत-हार का अंतर इतना कम हो सकता है
कि किसी बड़े दल का उम्मीदवार चुनाव गंवा सकता है।
नतीजा यह है कि बागियों की उपस्थिति ने बड़े गठबंधन और दलों की रणनीति को अस्थिर बना दिया है।
दल-बदल और लोकतांत्रिक संकट
इस चुनाव में बागी नेता न केवल वोटों का बंटवारा करेंगे,
बल्कि अगर वे जीत जाते हैं,
तो विधानसभा में ‘किंगमेकर’ की भूमिका में भी आ सकते हैं।
पूर्व में कई बार देखा गया है कि दल बदलने वाले विधायक सरकार
बनाने या गिराने में निर्णायक साबित हुए हैं—
इससे राजनीतिक अस्थिरता का खतरा बढ़ जाता है।
निष्कर्ष
बिहार चुनाव 2025 में बागी नेताओं की भूमिका बेहद अहम और निर्णायक है।
इनकी वजह से दलों के भीतर अस्थिरता, त्रिकोणीय मुकाबला,
सीटों का समीकरण बदलना और सरकार गठन की संभावनाओं को नया मोड़ मिलता है।
बागी नेताओं के सियासी दांव से कौन जीतेगा, कौन हारेगा,
इसका फैसला जनता के वोट और चुनावी नतीजों से ही सामने आएगा।









