Kabir ke Dohe: कबीर के वो दोहे जो आपके जीवन को दिखा सकती है नई राह, यहां पढ़ें उनके प्रसिद्ध दोहे
April 2, 2024 2025-01-30 6:29Kabir ke Dohe: कबीर के वो दोहे जो आपके जीवन को दिखा सकती है नई राह, यहां पढ़ें उनके प्रसिद्ध दोहे
Kabir ke Dohe: कबीर के वो दोहे जो आपके जीवन को दिखा सकती है नई राह, यहां पढ़ें उनके प्रसिद्ध दोहे
Kabir Ke Dohe: कबीर दास ने अपने दोहों के माध्यम से जीवन जीने की कई सीख दी हैं। इनके दोहे अत्यंत सरल भाषा में थे, जिसके कारण उन दोहों को कोई भी आसानी से समझ सकता है।
कबीर के दोहे: जीवन को संवारने वाले अनमोल विचार

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।


ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।


क्या भरोसे देह का, बिनस जाय क्षण माही।
सांस सांस सुमिरन करो, और जतन कछु नाही


गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काको लागूं पाय
बलिहारी गुरु आपकी, जिन गोविंद दियो बताय।


साईं इतना दीजीए, जामे कुटुंब समाए
मै भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए


मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई.
पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई.


कबीर कुआ एक हे,पानी भरे अनेक।
बर्तन ही में भेद है पानी सब में एक ।


बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
कबीर के दोहों से सीखें सफलता और सच्ची खुशहाली के रहस्य


बैद मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार।
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम आधार


कबीरा तेरे जगत में, उल्टी देखी रीत ।
पापी मिलकर राज करें, साधु मांगे भीख


माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर


माटी कहे कुमार से, तू क्या रोदे मोहे
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे


चलती चक्की देख कर, दिया कबीरा रोए
दुई पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए


जब तूं आया जगत में, लोग हंसे तू रोए
ऐसी करनी न करी पाछे हंसे सब कोए


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।
हर समस्या का हल कबीर के दोहों में छुपा है, जानिए कैसे!


जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।


दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।


तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी ऑखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय


पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय


जहाँ न जाको गुन लहै, तहाँ न ताको ठाँव ।
धोबी बसके क्या करे, दीगम्बर के गाँव


कस्तूरी कन्डल बसे मृग ढूढै बन माहि।
त्ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नहि


कबीर तहां न जाइये, जहां जो कुल को हेत
साधुपनो जाने नहीं, नाम बाप को लेत


कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीड़
जो पर पीड़ न जानता, सो काफ़िर बे-पीर


जो तोकू कांता बुवाई, ताहि बोय तू फूल।
तोकू फूल के फूल है, बाको है तिरशूल


अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप ।
अति का भला न बरसना, अति की भली न घूप


नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए।
मीन सदा जल में रहे, धोय बास न जाए


कबीर सतगुर ना मिल्या, रही अधूरी सीख।
स्वांग जाति का पहरी कर, घरी घरी मांगे भीख


फल कारन सेवा करे, करे ना मन से काम।
कहे कबीर सेवक नहीं, चाहे चौगुना दाम।।


पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात.
एक दिना छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात


कबीर प्रेम न चक्खिया,चक्खि न लिया साव।
सूने घर का पाहुना, ज्यूं आया त्यूँ जाव॥