जन सुराज की एंट्री : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में नयी राजनीतिक पार्टी जन सुराज (JSP) ने चुनावी रंगमंच पर मजबूत एंट्री की। हालांकि पार्टी एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हुई, लेकिन 35 सीटों पर जन सुराज के वोट जीत-हार के अंतर से ज्यादा मिलने से नतीजों पर गहरा असर पड़ा। चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की अगुवाई वाली इस पार्टी ने चुनावी मुकाबले को बिल्कुल नया मोड़ दिया।
जन सुराज का चुनावी प्रदर्शन
#जन सुराज पार्टी ने 243 में से 238 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिनमें से अधिकांश की जमानत जब्त हो गई। इसके बावजूद पार्टी ने कुल मिलाकर लगभग 16.74 लाख वोट हासिल किए और 3.34 प्रतिशत वोट शेयर के साथ तीसरी सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरी। खासकर सीमांचल, कोसी और तिरहुत जैसे इलाकों में पार्टी ने तीसरे नंबर की हैसियत बनाई, जो नए राजनीतिक समीकरणों का संकेत है।

35 सीटों पर परिणामों पर गहरा प्रभाव
- चुनाव परिणामों के हिसाब से 35 सीटों पर जन सुराज को मिले वोट हार-जीत के अंतर से ज्यादा थे।
- इनमें 19 सीटें एनडीए के खाते में गईं जबकि 14 सीटें महागठबंधन ने जीतीं। कुछ सीटों पर जैसे मढ़ौरा
- जन सुराज दूसरे नंबर पर रही, जिसने मुकाबला दिलचस्प बना दिया। हालांकि यह साफ नहीं है
- कि जन सुराज के वोट ना होते तो ये वोट किस ओर जाते, लेकिन इससे अंदाजा होता है
- कि पार्टी ने कई इलाकों में निर्णायक भूमिका निभाई।
प्रशांत किशोर का बयान
चुनाव हारने के बाद, प्रशांत किशोर ने कहा कि “वोट नहीं मिलना गुनाह नहीं है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पार्टी ने जाति या धर्म के आधार पर कोई मतभेद नहीं किया और विकास के मुद्दों पर गौर किया। प्रशांत ने कहा कि जन सुराज ने पहली बार चुनाव लड़ते हुए भी गंभीर उपस्थिति दर्ज की है, जो भविष्य में पार्टी की संभावनाओं के लिए सकारात्मक संकेत है। उनका मानना है कि यह राजनीतिक जमीन तैयार करने का काम है, जो आने वाले वर्षों में फलित होगा।
जन सुराज की रणनीति और भविष्य
- जन सुराज पार्टी ने युवा मतदाताओं, महिलाओं और पिछड़े वर्ग के बीच मजबूत पकड़ बनाई है।
- प्रदेश भर में पार्टी ने नये लोकतांत्रिक मूल्यों और विकास के मुद्दों को लेकर प्रचार किया।
- यह देखना बाकी है कि आगामी चुनावों में पार्टी कैसे अपनी ताकत बढ़ाती है
- और वर्तमान दो बड़े गठबंधनों के बीच तीसरा विकल्प बन पाती है या नहीं।
बिहार की राजनीति में बदलाव के संकेत
जन सुराज का यह प्रदर्शन बिहार की परंपरागत राजनीति में अरसे बाद एक नई भूमिका प्रदर्शित करता है। यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने जनता को तीसरे विकल्प की ओर आकर्षित किया। इससे बड़ा संदेश है कि बिहार की राजनीति अब बहुआयामी हो रही है और छोटे-छोटे दल भी निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।












