बिहार किसान फसल नुकसान 2025 भारत के किसान हमेशा से देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे हैं, परंतु हाल ही में आए मोंथा चक्रवाती तूफान और लगातार हो रही भारी बारिश ने किसानों की अनेक फसलों को बुरी तरह प्रभावित किया है। इस बार किसानों की मेहनत पर ऐसी प्राकृतिक आपदा आई है, जो खेती को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ उनके जीवन पर गहरा असर डाल रही है। जबकि देश में चुनावी शोर चल रहा है, किसान इस संकट में कहीं खो गए जैसे नजर आ रहे हैं।
मोंथा तूफान और बारिश का फसलों पर असर
मोंथा चक्रवात के कारण कोविड-19 महामारी के बाद सबसे अधिक किसानों को नुकसान हुआ है। खासकर उत्तर भारत, बिहार, छत्तीसगढ़, यूपी और मध्यप्रदेश जैसे कृषि प्रधान राज्यों में भारी बारिश और तेज हवाओं ने तैयार फसलों को तहस-नहस कर दिया है। किसान श्याम सुंदर प्रसाद ने बताया कि उनकी धान की फसल कटाई से पहले ही तूफान और बारिश से गिर गई या सड़ने लगी। इस वजह से उनके परिवार की कमाई डूब गई है और कर्ज चुका पाना कठिन हो गया है। अच्छी फसल की उम्मीद में की गई मेहनत बारिश और तूफान की मार से बेकार हो गई है।

मुख्य फसलों को हुआ नुकसान
- धान, गेहूं, सरसों, चना, अरहर और आलू जैसी फसलों को भारी नुकसान हुआ है। रायबरेली, साहिबगंज, कोरिया
- और अन्य जिलों में कई जगह खेत तीन-तीन फीट पानी में डूब गए, जिससे फसलें सड़ने लगीं हैं।
- धान के दाने काले पड़ने लगे हैं और खेतों में जलभराव के कारण फफूंद और कीटों का हमला बढ़ गया है।
- इससे किसानों को न केवल फसल का नुकसान हुआ है, बल्कि पशुओं के लिए चारा भी कम पड़ने लगा है।
- कई जगहों पर गेहूं की बुवाई प्रभावित हुई है, जो आने वाले समय में खेती के लिये चिंता का विषय है।
किसानों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव
किसान मोंथा तूफान और बारिश से प्रभावित होकर अब आर्थिक संकट में फंस गए हैं। फसल बर्बाद होने से उनकी कमाई खत्म हो गई है और कर्ज चुकाने की स्थिति भी खराब हो गई है। कई किसानों ने अभी तक राहत और मुआवजा नहीं पाया है, जिससे निराशा और बढ़ गई है। किसानों ने सरकार से शीघ्र मुआवजे की मांग की है ताकि वे अपनी खेती और परिवार की जरूरतों को पूरा कर सकें।
चुनावी माहौल में किसान का दर्द अनसुना
- देश में राजनीतिक पार्टियां चुनावी राजनैतिक शोर में व्यस्त हैं, वहीं किसान और उनकी समस्याएं कहीं पीछे
- छूटती नजर आ रही हैं। खेतों में बर्बाद हो रही फसलें और बढ़ती आर्थिक परेशानी के बीच किसानों
- को सरकारी सहायता की सख्त जरूरत है। चुनावी नारे तो अक्सर किसानों के नाम पर लगाए जाते हैं
- लेकिन जमीन पर उनकी वास्तविक मदद कम देखने को मिलती है।
सरकार और जिम्मेदारों की भूमिका
कृषि विभाग और राज्य सरकारों ने प्रभावित क्षेत्रों में सर्वे शुरू कर दिया है, लेकिन किसानों की संख्या बहुत अधिक है और नुकसान का सही आकलन अभी तक अधूरा है। स्थानीय किसान शिकायतें दर्ज करवा रहे हैं, हालांकि मुआवजा वितरण में देरी चिंता का विषय बनी हुई है। किसानों को बेहतर बीमा योजनाओं, आपदा प्रबंधन और जल निकासी की व्यवस्था सुनिश्चित करने की जरूरत है ताकि आने वाले समय में ऐसे संकटों से बचाव हो सके।
समाधान और आगे का रास्ता
- फसलों के बेहतर बीमा और त्वरित मुआवजे की नीति लागू होनी चाहिए।
- किसान प्रतिनिधि और अधिकारी जमीन स्तर पर जाकर नुकसान की समीक्षा करें और समय पर राहत दें।
- प्राकृतिक आपदाओं के प्रति मौसम पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए।
- किसान शिक्षा और तकनीकी सहायता देकर बेहतर फसल संरक्षण और जल निकासी उपाय अपनाने चाहिए।
- राजनीतिक दल चुनावी वादों के साथ साथ किसानों के तत्काल हितों को प्राथमिकता दें।
- मोंथा तूफान और भारी बारिश ने देश के किसानों की मेहनत पर ऐसा कहर बरपाया है
- कि उनकी कमाई छिन गई है और जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। चुनावी शोर-शराबे में जहां सभी पार्टियां
- अपनी-अपनी जीत के दावे करती हैं, वहीं किसान की यथार्थ पीड़ा कहीं अनसुना रह जाती है।
- किसानों की उज्जवल भलाई के लिए सरकार और समाज को मिलकर ठोस कदम उठाने की जरूरत है
- ताकि ये प्राकृतिक आपदाएं उनकी कमाई और मेहनत को दोबारा न छीन पाएं।







