दिल्ली में Cloud Seeding : उत्तर प्रदेश में 2025 में क्लाउड सीडिंग का प्रयोग अब तक का सबसे बड़ा और महत्वूपर्ण प्रयोग साबित हुआ है। इस तकनीक से जुड़े वैज्ञानिक और तकनीकी पहलुओं का अध्ययन और प्रयोग जारी है, और इस दौरान आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने भी इस प्रयोग का विस्तार से विश्लेषण किया है। प्रसिद्ध शोध और रिपोर्टों के अनुसार, यह प्रयोग अभी पूरी तरह सफल नहीं रहा है, लेकिन इससे कई महत्वपूर्ण जानकारियों का पता चला है।
क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग एक कृत्रिम बारिश तकनीक है, जिसमें बादलों में केमिकल्स, जैसे सिल्वर आयोडाइड और ड्राई आइस का उपयोग कर वर्षा को प्रेरित किया जाता है। यह प्रक्रिया तब की जाती है जब प्राकृतिक वर्षा कम हो या सूखे का खतरा हो। इसमें हवाई जहाज, रॉकेट या जमीन से केमिकल को छोड़ा जाता है, ताकि बादलों में पानी के कण अधिक मात्रा में बनने और बरसने लगें।

दिल्ली में ट्रायल क्यों फेल हुआ?
#दिल्ली में यह प्रयोग 2025 में काफी बड़े पैमाने पर आयोजित किया गया था, जिसमें वैज्ञानिकों ने देखा कि मौसम के अनुकूल नमी और वायु गुणवत्ता के अभाव में बारिश अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाई। आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों के अनुसार, ट्रायल में कुछ मुख्य कारणों से सफलता नहीं मिली, जिनमें शामिल हैं:
- नमी की कमी: प्रयोग के समय वायु में पर्याप्त नमी नहीं थी, जिससे बादल सघन नहीं हो सके।
- मौसम की अनिश्चितता: मौसम में अचानक परिवर्तन होने से बारिश का प्रभाव कम हुआ।
- प्रयोग का समय: सही समय पर सही तकनीक का प्रयोग भी सफलता का निर्णायक कारक है।
तकनीक में सुधार की जरूरत
आईआईटी कानपुर ने अपने विश्लेषण में कहा है कि क्लाउड सीडिंग अभी पूरी तरह से परिपक्व नहीं है, और इसमें सुधार की गुंजाइश मौजूद है। वैज्ञानिक कह रहे हैं कि:
- सही मात्रा में रसायनों का प्रयोग जरूरी है।
- सही तापमान और वायु प्रवाह का ज्ञान होना आवश्यक है।
- अधिक सटीक और प्रवेशी तकनीकों का इस्तेमाल जरूरी है।
प्रयोग से मिली सीखें और भविष्य की संभावनाएं!
हालांकि यह ट्रायल सफलता से कम ही रहा है, लेकिन इससे कई अहम बातें पता चली हैं:
- मौसम और पर्यावरण की जानकारी जरूरी है।
- सटीक तकनीक विकसित करने से ही सफलता संभव है।
- यह प्रयोग सूखे क्षेत्रों में जल संकट को दूर करने का उपाय भी बन सकता है, यदि तकनीक पूरी तरह से विकसित हो जाए।
फायदे और चुनौतियाँ!
सही दिशा में किया जाए तो क्लाउड सीडिंग:
- सूखे इलाकों में बारिश लाने में मदद कर सकती है।
- कृषि को बढ़ावा दे सकती है।
- पर्यावरण की स्थिति और वायु गुणवत्ता में सुधार कर सकती है।
- जल स्रोतों की भरपाई कर सकती है।
दिल्ली में इस बार का ट्रायल असफल रहा है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सफलता का अंतिम कदम नहीं है। यह तकनीक अभी भी विकास के दौर में है। यदि सटीकता और तकनीक में सुधार किया जाए तो यह भविष्य में पानी की कमी, प्रदूषण और सूखे से प्रभावी ढंग से लड़ने का तरीका बन सकता है।







