फर्जी वैज्ञानिक परमाणु डेटा : फर्जी वैज्ञानिक अख्तर ने राष्ट्रीय शोध संस्थान से परमाणु डेटा चोरी किया। जांच में खतरनाक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, विदेशी कनेक्शन और संवेदनशील दस्तावेज बरामद हुए। जानिए कैसे सामने आई यह सनसनीखेज जासूसी कहानी।
कैसे बना अख्तर ‘वैज्ञानिक’
देश में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने वैज्ञानिक और सुरक्षा एजेंसियों को हिला दिया है। एक व्यक्ति, जिसने खुद को “वैज्ञानिक” बताकर लंबे समय तक रिसर्च प्रोजेक्ट्स में काम किया, दरअसल एक फर्जी वैज्ञानिक निकला। उसका नाम अख्तर बताया जा रहा है। उसने संवेदनशील परमाणु डेटा चुराकर विदेशी एजेंसियों को बेचने की कोशिश की थी। जांच एजेंसियों ने उसके ठिकाने से कई इलेक्ट्रॉनिक गैजेट, गोपनीय नोटबुक और संदिग्ध हार्ड डिस्क जब्त की हैं।

पुलिस जांच के मुताबिक अख्तर ने खुद को एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्थान का रिसर्च एसोसिएट बताकर पहचान बनाई। उसने नकली आईडी कार्ड, डिग्री और सर्टिफिकेट के सहारे कई सरकारी कार्यक्रमों में भी शिरकत की। सोशल मीडिया और कॉन्फ्रेंस आयोजनों में खुद को “न्यूक्लियर एनर्जी एक्सपर्ट” के रूप में प्रस्तुत कर, उसने कई वैज्ञानिकों का विश्वास जीत लिया।
कई महीनों की ‘नेटवर्क बिल्डिंग’ के बाद अख्तर ने संस्थान के डेटाबेस तक पहुंच हासिल कर ली। वह बैकएंड सर्वर की फाइल कॉपी कर क्लाउड अकाउंट में ट्रांसफर करता था। यह डेटा भारत की परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं से जुड़ी गोपनीय जानकारी से संबंधित बताया जा रहा है।
कब और कैसे हुआ खुलासा?
- एक टेक्निकल ऑडिट के दौरान संस्थान के सुरक्षा अधिकारियों को डेटा लीक का शक हुआ।
- लॉग फाइल की जांच में पता चला कि रिसर्च सर्वर से कुछ संवेदनशील फोल्डर अज्ञात IP एड्रेस से
- डाउनलोड किए गए हैं। जब उस IP की लोकेशन ट्रेस की गई तो वह अख्तर के नाम से जुड़े अकाउंट तक पहुंची।
- छानबीन में यह खुलासा हुआ कि अख्तर की कोई आधिकारिक नियुक्ति नहीं थी और उसके
- दस्तावेज नकली थे। सुरक्षा एजेंसियों ने तुरंत कार्रवाई करते हुए उसके निवास स्थान पर छापा मारा
- जहां से कई ऐसे उपकरण मिले जो साइबर जासूसी में उपयोग किए जाते हैं।
बरामद हुई खतरनाक चीजें
जांच टीम ने अख्तर के पास से जिन वस्तुओं को जब्त किया, उनमें शामिल हैं:
- उच्च क्षमता वाली हार्ड ड्राइव और एनक्रिप्शन डिवाइस
- विदेशी मुद्रा में नकद रकम
- एक उपग्रह लिंक सिग्नल रिसीवर
- कई पासपोर्ट और फर्जी पहचान पत्र
- परमाणु केंद्रों से संबंधित तकनीकी ड्रॉइंग और ईमेल अटैचमेंट
- इन सब उपकरणों से स्पष्ट है कि यह गिरोह किसी बड़े नेटवर्क का हिस्सा था।
- एजेंसियां अब उसके विदेशी संपर्कों की तहकीकात कर रही हैं।
विदेशी लिंक की जांच
- सूत्रों के अनुसार, अख्तर के ईमेल और चैट रिकॉर्ड से कुछ संदिग्ध विदेशी सर्वरों से बातचीत के साक्ष्य मिले हैं।
- माना जा रहा है कि उसने विदेश में बैठे एजेंटों को वैध डेटा के बदले मोटी रकम हासिल करने की कोशिश की थी।
- खुफिया एजेंसियों ने साइबर सेल के साथ मिलकर डेटा रिकवरी और डिजिटल फॉरेंसिक जांच शुरू कर दी है।
राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा
- यह घटना इस बात का संकेत है कि वैज्ञानिक संस्थानों को अब डेटा सिक्योरिटी पर पहले से अधिक गंभीरता दिखानी होगी।
- परमाणु ऊर्जा, रक्षा व अंतरिक्ष से जुड़े प्रोजेक्ट्स की जानकारी अत्यंत संवेदनशील होती है
- और किसी भी लीक से देश की सुरक्षा पर खतरा मंडरा सकता है। ऐसे में सुरक्षा एजेंसियां अब सभी
- रिसर्च संस्थानों में डेटा एक्सेस सिस्टम की मॉनिटरिंग बढ़ाने जा रही हैं।
विशेषज्ञों की राय
- साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ तकनीकी नहीं बल्कि ‘इंसाइडर थ्रेट’ का मामला है।
- जब कोई व्यक्ति संगठन के अंदर रहकर जानकारी चुराता है तो यह पहचानना कठिन हो जाता है।
- ऐसे मामलों से बचने के लिए ‘जीरो ट्रस्ट सिक्योरिटी मॉडल’ अपनाना जरूरी है
- जिसमें हर यूजर की ऑनलाइन गतिविधि ट्रैक की जाती है।
अब आगे क्या?
- फिलहाल अख्तर को रिमांड पर लेकर पूछताछ की जा रही है। एजेंसियां यह समझने में जुटी हैं
- कि क्या यह कोई एकल व्यक्ति का प्रयास था या इसके पीछे किसी विदेशी इंटेलिजेंस की साजिश है।
- मामले की गंभीरता को देखते हुए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को जांच सौंपने की तैयारी चल रही है।
- ‘फर्जी वैज्ञानिक अख्तर’ का यह मामला देश में साइबर सुरक्षा और डेटा प्रोटेक्शन की सबसे बड़ी चेतावनी बन गया है।
- यह दर्शाता है कि तकनीकी प्रगति जितनी तेज हो रही है, उतना ही खतरा डेटा चोरी और जासूसी का भी बढ़ गया है।
- अब जरूरत है कि संस्थान अपने सुरक्षा ढांचे को और मजबूत करें, ताकि कोई दूसरा “फर्जी वैज्ञानिक” देश के परमाणु रहस्यों तक पहुंच न सके।







