AAP पार्टी विवाद : दिल्ली में एक साझा त्योहार पर लगी रोक को लेकर आम आदमी पार्टी ने नाराज़गी जताई। AAP ने सवाल उठाया कि जब दिल्ली के लोग मिलकर मनाते थे तो अब रोक क्यों?
दिल्ली, भारत की सांस्कृतिक राजधानी होने के साथ ही हरेक धर्म और समुदाय के त्योहारों का मेलजोल भी है। यहाँ दशकों तक विभिन्न धर्म, जाति, और समुदाय एक साथ मिलकर मेलजोल से त्योहार मनाते आए हैं। लेकिन अब हाल ही में यह देखा गया है कि दिल्ली में ये संयुक्त उत्सव कम हुए हैं और इस पर आम आदमी पार्टी (AAP) ने अपने राजनीतिक और सांस्कृतिक कारणों के चलते ब्रेक लगाने की बात कही है।
दिल्ली के मिलजुल कर मनाए जाने वाले त्योहार

दिल्ली में होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस, नवरात्रि, गुरु नानक जयंती, छठ पूजा जैसी कई त्योहार सामान्य रूप से सभी समुदाय मिलकर मनाते रहे हैं।
इन त्योहारों में एक-दूसरे के साथ उत्साह और भाईचारे की भावना बनी रहती थी।
पूरे शहर में फोहरों, रंगों, संगीत और भजन-कीर्तन के बीच लोग एक-दूसरे के दरवाजे पर जाकर शुभकामनाएं देते थे।
इस मेलजोल ने दिल्ली को एक आदर्श बहुसांस्कृतिक शहर बनाने में मदद की.
AAP ने क्यों बोला ब्रेक?
- हाल के वर्षों में दिल्ली में राजनीतिक माहौल पर बड़ी-बड़ी बदलाव आए हैं।
- आम आदमी पार्टी (AAP) ने सत्ता में आने के बाद कुछ त्योहारों को लेकर अपनी अलग रणनीति अपनाई है।
- विशेष रूप से AAP ने मुस्लिम और सिख समुदाय के त्योहारों जैसे इफ्तार पार्टी आदि
- पर ज्यादा ध्यान दिया, जबकि हिंदू त्योहारों के आयोजनों में कमी देखी गई।
- इसके अलावा, AAP सरकार ने कई बड़े हिंदू त्योहारों के सरकारी स्तर पर संयुक्त उत्सवों के
- आयोजन में रुचि कम दिखाई और उन्हें अलग-अलग समुदायों के बीच व्यवस्थित कर दिया।
- AAP के अधिकारियों का मानना है कि इससे समुदायों के बीच गलतफहमी और राजनीतिक टकराव कम होगा
- और त्योहार अपनी सांस्कृतिक पवित्रता के साथ मनाए जाएंगे।
- लेकिन इसके विरोध में बीजेपी और कांग्रेस ने आरोप लगाया है
- कि यह फैसला सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाला है और दिल्ली के मेलजोल को नुकसान पहुंचा रहा है।
AAP और BJP के बीच त्योहारों को लेकर विवाद
#AAP और बीजेपी के बीच दिल्ली में त्योहारों को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। बीजेपी ने आरोप लगाया कि AAP केवल मुस्लिम और कुछ विशेष त्योहारों का समर्थन करता है और बड़े हिंदू त्योहारों को नजरअंदाज करता है। उदाहरण के तौर पर, नवरात्रि, दशहरा और हिंदू नव वर्ष जैसे त्योहारों पर AAP की सरकारी पार्टियों ने पारंपरिक उत्साह नहीं दिखाया।
वहीं, बीजेपी ने इन त्योहारों के बड़े पैमाने पर आयोजन शुरू किए हैं और इसे अपनी राजनीतिक जीत के रूप में प्रचारित किया है। उन्होंने नवरात्रि के दौरान फलाहार पार्टी जैसे कार्यक्रम आयोजित किए, जो पहले कभी नहीं होते थे.
AAP ने इसका जवाब देते हुए कहा कि उनका फोकस समाज के सभी वर्गों के लिए समान सम्मान पर है और कोई भी त्योहार राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
दिल्ली की जनता का रुख
- दिल्ली की जनता इस बदलाव को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया दे रही है।
- कई लोग मानते हैं कि त्योहारों का मिलजुल कर मनाया जाना ज़रूरी है क्योंकि इससे सामाजिक सौहार्द बना रहता है।
- वहीं कुछ लोग कहते हैं कि प्रत्येक समुदाय को अपनी परंपराओं और त्योहारों को
- अपनी सांस्कृतिक पवित्रता के साथ मनाने का अधिकार होना चाहिए।
- साथ ही, कुछ राजनीतिक समर्थक इस बदलाव को अपने-अपने पक्ष के
- लिए फायदेमंद मानते हैं और इसे राजनीति का हिस्सा बनाते हैं।
त्योहारों में स्थानीय संस्कृति का महत्व
- दिल्ली में त्योहारों का महत्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक अम्बर तक फैला हुआ है।
- यहां के त्योहारों में पंजाबी मिठाइयों से लेकर बंगाली पंडाल, दक्षिण
- भारतीय कलाकृतियों से लेकर उत्तर भारतीय परंपराओं का समावेश होता है।
- इसलिए त्योहारों को मिलकर मनाने से सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता था, जो अब कम हो रहा है।
- AAP की नीतियों ने इस मिलजुल को सीमित करने की कोशिश की है
- जिसका असर ग्रामीण और शहरी मुकाबले में भी दिखता है।
- दिल्ली की विविध सांस्कृतिक, धार्मिक, और राजनीतिक दुनिया में त्योहारों का भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है।
- परंतु वर्तमान में AAP की नीतियों के चलते यह संयुक्त त्योहार मनाने की परंपरा कमजोर पड़ रही है।
- AAP के ब्रेक लगाने की वजह से कुछ त्योहारों पर समाज के बीच दूरी बढ़ने लगी है
- जबकि दिल्ली के त्योहारों के मेलजोल और सामाजिक सौहार्द की बात अब एक चुनौती बन गई है।
- आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि दिल्ली के लोग और राजनीतिक दल इस बदलाव को
- किस तरह से संभालते हैं और क्या फिर से त्योहारों
- में एकता लौटती है या राजनीतिक रुख और गहरा होता है।











