संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद भारत : संयुक्त राष्ट्र में भारत को स्थायी सदस्यता न दिए जाने पर वैश्विक स्तर पर आलोचना तेज हुई है। एक प्रमुख देश ने इसे UN की “सबसे बड़ी कमजोरी” बताते हुए सख्त चेतावनी जारी की है। जानिए किस देश ने भारत का समर्थन किया और क्या कहा।
संयुक्त राष्ट्र पर उठे फिर सवाल
#संयुक्त राष्ट्र (UN) की साख पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं। भारत को अभी तक सुरक्षा परिषद (UN Security Council) में स्थायी सदस्यता नहीं दिए जाने को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर आलोचना तेज हो गई है।
हाल में एक बड़े शक्ति संपन्न देश ने सार्वजनिक रूप से कहा कि भारत को स्थायी सदस्यता से बाहर रखना संयुक्त राष्ट्र की “सबसे बड़ी कमजोरी” है। उस देश ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी कि अगर संगठन ने शीघ्र सुधार नहीं किए, तो उसकी प्रासंगिकता पर गंभीर सवाल खड़े हो जाएंगे।

किस देश ने दी सख्त चेतावनी?
वैश्विक रिपोर्ट्स के अनुसार, यह सख्त टिप्पणी जापान ने की है। जापान ने कहा कि एशिया जैसे विशाल महाद्वीप का प्रतिनिधित्व बिना भारत के अधूरा है। भारत न केवल दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है बल्कि उसकी सेना, अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव आज किसी भी स्थायी सदस्य से कम नहीं।
जापान ने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र एक ऐसी संस्था बन चुकी है जो 1945 की परिस्थितियों में अटकी हुई है। आज जब दुनिया में शक्ति संतुलन बदल चुका है, तब भी भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील जैसे देशों को अनदेखा करना संस्था की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा रहा है।
भारत की ओर से क्या प्रतिक्रिया आई?
भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग उठा रहा है। प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय ने कई बार कहा है कि UNSC की मौजूदा संरचना बीते युग की सोच पर बनी है और इसे आधुनिक जरूरतों के हिसाब से बदला जाना चाहिए।
#भारत का तर्क है कि वह वैश्विक शांति अभियानों में सबसे बड़ा योगदानकर्ता है, फिर भी उसे निर्णय लेने वाली शीर्ष संस्था में जगह नहीं दी गई।
भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि अब संयुक्त राष्ट्र में “समान भागीदारी” का युग आना चाहिए, अन्यथा विकासशील देशों का भरोसा इस मंच से उठ सकता है।
दुनिया के अन्य देशों का रुख
- भारत को समर्थन सिर्फ जापान या ब्राजील जैसे देशों से ही नहीं मिला, बल्कि अमेरिका, फ्रांस और रूस ने भी
- कई मौकों पर भारत की सदस्यता का समर्थन किया है।
- हालांकि चीन इस मुद्दे पर हमेशा से विरोध की नीति अपनाता रहा है। चीन का मानना है
- कि भारत को स्थायी सदस्य बनाने से क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में बदलाव आएगा।
- यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र में सुधार प्रक्रिया वर्षों से ठप पड़ी है।
अफ्रीकी देशों ने भी इस पर जोर दिया कि एशिया और अफ्रीका जैसे महाद्वीपों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलने से विश्व शांति के प्रयास अधूरे रह जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की साख पर सवाल
- बढ़ती आलोचना के बीच अब यह सवाल उठने लगा है कि संयुक्त राष्ट्र हमेशा वही काम करता है
- जो कुछ प्रभावशाली देश चाहते हैं। कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अगर भारत
- जैसे वैश्विक शक्ति केंद्रों को नजरअंदाज किया गया तो संयुक्त राष्ट्र धीरे-धीरे अप्रासंगिक हो जाएगा।
- जापान ने अपने बयान में कहा कि “अगर UN खुद को बदल नहीं सका, तो वह विश्व शांति का मंच नहीं रह जाएगा
- बल्कि पुराने जमाने की राजनीतिक इकाई में बदल जाएगा।”
- भारत ने इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह ऐसे सुधारों का
- समर्थन करता है जो सभी देशों को बराबर सम्मान और अधिकार दें।
भारत की अहमियत क्यों जरूरी?
#भारत आज विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसकी सक्रिय भूमिका जी-20, ब्रिक्स, और कई वैश्विक मंचों पर देखी जा चुकी है।
सुरक्षा परिषद में भारत की उपस्थिति न केवल एशिया बल्कि वैश्विक दक्षिण के देशों की आवाज को भी मजबूती देगी।
भारत के पास परमाणु शक्ति, मजबूत सैन्य क्षमता और स्थायी लोकतंत्र का अनुभव है जो विश्वस्थर के निर्णयों में उसे स्वाभाविक भागीदार बनाता है।
विश्लेषकों के मुताबिक, भारत का सदस्य बनना केवल प्रतिष्ठा का मामला नहीं, बल्कि संतुलित विश्व व्यवस्था की जरूरत है।
अब क्या हो सकता है आगे?
- संयुक्त राष्ट्र की सुधार प्रक्रिया वर्षों से राजनीतिक टकराव का शिकार है। लेकिन जापान जैसे
- देशों के हालिया बयानों ने इस मुद्दे को फिर से जीवित कर दिया है।
- अगले वर्ष होने वाली UN जनरल असेंबली में यह विषय चर्चा के केंद्र में रहने की संभावना है।
- भारत भी इस अवसर का इस्तेमाल अपने पक्ष को मजबूत करने में करेगा।
- अगर अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन खुले तौर पर भारत का समर्थन जारी रखते हैं,
- तो आने वाले वर्षों में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर कोई ठोस निर्णय लिया जा सकता है।
- भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जगह न देना अब केवल प्रतिनिधित्व का
- नहीं बल्कि वैश्विक न्याय और संतुलन का मुद्दा बन गया है।
- जापान जैसे देशों की सख्त चेतावनी ने यह साबित कर दिया है कि दुनिया अब बदलाव चाहती है।
- यदि संयुक्त राष्ट्र इस दिशा में आगे नहीं बढ़ा, तो उसकी विश्वसनीयता पर गहरा असर पड़ेगा
- और भारत जैसे जिम्मेदार देश के बिना उसकी भूमिका अधूरी ही रहेगी।









