पूजा आसन विधि फायदे धार्मिक शास्त्रों में पूजा के दौरान सही आसन का विशेष महत्व बताया गया है। जानें किस आसन पर बैठना शुभ होता है और उसके फायदे क्या हैं।
पूजा आसन विधि फायदे पूजा में शुभ आसन क्यों जरूरी है
#पूजा करते समय आसन पर बैठना देवता के प्रति सम्मान दर्शाने का प्रतीक होता है और यह शरीर और मन को स्थिर और शुद्ध रखता है। बिना आसन के सीधे जमीन पर बैठने से पूजा अधूरी मानी जाती है और उसमें सफलता नहीं मिलती। शास्त्रों के अनुसार, सही आसन पर बैठने से पूजा में एकाग्रता बढ़ती है और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
पूजा में आसन का महत्व और उसकी आवश्यकता

पूजा करते समय आसन पर बैठना सिर्फ आराम के लिए नहीं बल्कि शारीरिक और मानसिक स्थिरता के लिए बहुत जरूरी होता है। शास्त्रों के अनुसार, मन और शरीर की स्थिरता से पूजा में एकाग्रता आती है और दिव्य ऊर्जा प्रवाहित होती है। बिना उचित आसन के बैठने से पूजा अधूरी या असफल हो सकती है।
शुभ आसन कौन-कौन से हैं?
कुशासन (कुश घास का आसन) मंत्र जाप और पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है। इसके अलावा काले हिरण के चर्म, लाल कंबल, मृगचर्म, और कपड़े से बनी आसन भी उपयुक्त माने जाते हैं। प्रत्येक आसन का धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व होता है, जैसे कुशासन से स्वास्थ्य और मानसिक शांति मिलती है।
किस प्रकार के आसन से बचना चाहिए?
बांस, लकड़ी, पत्थर, घास या पत्तों से बने आसन शास्त्रों में असमर्थनीय और अशुभ बताए गए हैं। ऐसा कहा गया है कि इनके प्रयोग से आर्थिक तंगी, रोग, दुर्भाग्य और मानसिक अशांति हो सकती है। पूजा में ऐसे आसन का इस्तेमाल श्रद्धा व ऊर्जा पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
पूजा में आसन बिछाने के शास्त्रीय नियम
पूजा स्थल को साफ-सुथरा रखना चाहिए। आसन हमेशा शुद्धता का प्रतीक होता है
और ब्रह्मांड पुराण व अन्य ग्रंथों में इसे पवित्र करने के मंत्र दिए गए हैं।
आसन को प्रणाम करना और उसे पूजा के बाद उचित स्थान पर रखना
पूजा की सफलता के लिए आवश्यक होता है।
आसन का रंग और आकार
लाल रंग के आसन का प्रयोग विशेष रूप से हनुमान जी,
माँ दुर्गा और लक्ष्मी जी की पूजा के लिए शुभ माना जाता है।
आसन का आकार चौकोर होना चाहिए, जो स्थिरता का प्रतीक होता है।
अस्थिर, असमान या धातु के आसन पर बैठना अनुचित माना जाता है।
पूजा के समय आसन पर बैठने के प्रभाव
आसन पर बैठने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।
यह मन को शांत करता है और ध्यान को केंद्रित रखता है।
साधना की शक्तियों को बढ़ावा मिलती है और पूजा के फल में वृद्धि होती है।
पूजा में आसन का धार्मिक और आध्यात्मिक संदर्भ
धर्मशास्त्रों में आसन को साधना की आधारशिला माना गया है।
गीता में भी स्थिर और संयमित आसन पर बैठकर साधना करने की सलाह दी गई है।
यह न केवल पूजा का शारीरिक पहलू है बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का भी माध्यम है।









