महाकाल मंदिर विवाद उज्जैन के महाकाल मंदिर परिसर में 200 साल पुरानी मस्जिद तोड़े जाने को लेकर तकिया प्रकरण अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। जानिए पूरा मामला और कोर्ट का रुख।
महाकाल मंदिर विवाद मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का फैसला और याचिकाकर्ताओं की चुनौती
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने उज्जैन के महाकाल लोक परिसर के विस्तार के लिए प्रशासन द्वारा की गई भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया के बाद करीब 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद को तोड़े जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता मोहम्मद तैयब समेत 13 लोगों ने दावा किया था कि ये मस्जिद वक्फ संपत्ति है और इसे तोड़ना अवैध है। उन्होंने मस्जिद के पुनर्निर्माण और इस कार्रवाई की जांच की मांग भी की थी।
महाकाल मंदिर विवाद की शुरुआत

उज्जैन में महाकाल मंदिर परिसर के विस्तार के लिए 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद को तोड़ दिया गया। इस घटना ने स्थानीय मुस्लिम समुदाय में आक्रोश फैलाया और विवाद तेजी से बढ़ गया। मस्जिद को वक्फ संपत्ति के रूप में 1985 में पंजीकृत किया गया था। इस विध्वंस को लेकर कई धार्मिक और कानूनी सवाल उठे जो अंततः अदालतों तक पहुंचे।
तकिया मस्जिद का इतिहास और महत्व
तकिया मस्जिद का इतिहास लगभग 200 वर्षों पुराना है और यह उज्जैन के मुस्लिम समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण नमाज अदा करने का स्थल था। मस्जिद का विध्वंस होने से पहले वहां नियमित नमाज होती थी, जो जनवरी 2025 तक जारी थी। मस्जिद का विध्वंस धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से समुदाय के लिए एक बड़ा घाटा था।
कानूनी पहलू और हाई कोर्ट का फैसला
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने मस्जिद के पुनर्निर्माण की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि धर्म का पालन करने का अधिकार किसी खास स्थान से जुड़ा नहीं है, और भूमि अधिग्रहण वैध कानूनी प्रक्रिया के तहत हुआ है। कोर्ट ने मुआवजा भी प्रेषित होने की बात कही।
सुप्रीम कोर्ट में मामला
हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए मस्जिद में नमाज पढ़ने वाले
13 स्थानीय निवासियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं का मानना है
कि भूमि अधिग्रहण और मस्जिद तोड़ने में कई कानूनों का उल्लंघन हुआ है
जिनमें वक्फ अधिनियम, पूजा स्थल अधिनियम और भूमि अधिग्रहण अधिनियम शामिल हैं।
सामाजिक और धार्मिक प्रभाव
यह विवाद उज्जैन के धार्मिक और सामाजिक माहौल को प्रभावित कर रहा है।
मुस्लिम समुदाय में इस विध्वंस को धार्मिक उत्पीड़न के तौर पर देखा जा रहा है।
वहीं, मंदिर परिसर के विस्तार को शहर के विकास से जोड़ा जा रहा है।
इस विवाद ने धार्मिक सहिष्णुता और साथ रहने की भावना पर प्रश्न चिह्न लगाया है।
भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में विवाद
याचिका में आरोप लगाया गया है कि भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में अनियमितताएं हुई हैं
और उचित मुआवजा नहीं दिया गया। प्रशासन की ओर से मुआवजा देने की बात कही गई है,
लेकिन याचिकाकर्ता इसे मानने को तैयार नहीं हैं।
इस मामले में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करने की मांग उठी है।
आगे की कानूनी लड़ाई और संभावित परिणाम
यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। कोर्ट का निर्णय धार्मिक स्वतंत्रता,
भूमि अधिग्रहण और कानूनी प्रक्रियाओं के बीच संतुलन तलाशने वाला होगा।
यह फैसला भविष्य में धार्मिक स्थल विवादों के लिए मिसाल बन सकता है।
सभी वर्गों को न्याय और सहिष्णुता के साथ इस विवाद के समाधान की उम्मीद है।









