1965 दिवाली बोनस शुरूआत : दशहरा और दिवाली के त्योहारों के करीब आते ही देश भर के कर्मचारियों के चेहरे पर एक खास चमक देखने को मिलती है। इसका कारण है बोनस की उम्मीद जो न केवल आर्थिक राहत प्रदान करती है बल्कि त्योहारों की खुशियों को दोगुना कर देती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह परंपरा कैसे शुरू हुई और कानूनी रूप से इसका क्या प्रावधान है!
1965 दिवाली बोनस शुरूआत दिवाली बोनस की उत्पत्ति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

दिवाली बोनस की परंपरा की शुरुआत भारत में 1940 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी. उस समय पहली बार दिवाली के अवसर पर कर्मचारियों को अतिरिक्त भुगतान की घोषणा की गई थी. यह पहल त्योहारों के समय बढ़ते खर्चों को देखते हुए की गई थी, जिसका उद्देश्य कर्मचारियों के त्योहारी सीजन के बोझ को कम करना था. इस प्रथा को बाद में और व्यवस्थित बनाने के लिए साल 1965 में पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट पारित किया गया, जिसके बाद बोनस कर्मचारियों का एक कानूनी अधिकार बन गया. इसके पीछे
- एक गहरा ऐतिहासिक कारण भी है। ब्रिटिश शासन से पहले भारत में
- कर्मचारियों को साप्ताहिक आधार पर वेतन दिया जाता था
- जिसका अर्थ था कि एक साल में उन्हें 52 हफ्तों का वेतन मिलता था, यानी लगभग 13 महीने के बराबर.
- जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मासिक वेतन प्रणाली लागू की, तो कर्मचारियों को केवल 12 महीने का वेतन मिलने
- लगा, जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान हुआ. इस नुकसान की भरपाई के लिए 1940 में निर्णय लिया गया कि 13वें महीने
- का वेतन दिवाली पर दिया जाएगा, जो बाद में दिवाली बोनस के रूप में जाना जाने लगा!
पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट, 1965: मुख्य उद्देश्य और लागू होने की शर्तें
- पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट, 1965 भारत का एक महत्वपूर्ण श्रम कानून है जो कर्मचारियों को संस्थान के
- मुनाफे में हिस्सेदारी सुनिश्चित करता है. इसका मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों को प्रेरित करना, उनकी कड़ी मेहनत
- का पुरस्कार देना और कंपनी के प्रति उनमें अपनेपन की भावना पैदा करना है. यह कानून उन सभी फैक्ट्रियों
- और प्रतिष्ठानों पर लागू होता है जहां 20 या उससे अधिक
- व्यक्ति काम कर रहे हैं. एक बार जब कोई कंपनी इस
- अधिनियम के दायरे में आ जाती है, तो भले ही बाद में कर्मचारियों की संख्या 20 से कम हो जाए
- उसे अपने कर्मचारियों को बोनस देना अनिवार्य रहता है!
बोनस की गणना और भुगतान की अनिवार्यता
- अधिनियम के तहत, नियोक्ता को कर्मचारी के वार्षिक वेतन या मजदूरी का कम से कम 8.33 प्रतिशत
- न्यूनतम बोनस देना अनिवार्य है. यह भुगतान चाहे कंपनी को लाभ हो या हानि, दोनों ही स्थितियों में किया जाना चाहिए.
- बोनस की गणना कर्मचारी के वेतन और कंपनी के मुनाफे के आधार पर की जाती है. किसी भी वित्तीय वर्ष के समाप्त होने
के 8 महीने के भीतर बोनस का भुगतान करना अनिवार्य है. आमतौर पर, भारत में कई कंपनियां दिवाली के त्योहार के आसपास बोनस का भुगतान करती हैं, जिससे कर्मचारियों को त्योहारों की तैयारियों में आर्थिक सहायता मिलती है अधिनियम के तहत अधिकतम बोनस कर्मचारी के वेतन के 20% तक हो सकता है!






