बिहार चुनाव सर्वे 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में मुस्लिम और OBC वोटरों का रुझान और समर्थन किस पार्टी को मिला? जानिए क्यों महागठबंधन (MGB) मुस्लिम-OBC मतदाताओं को एकजुट नहीं कर पाया और किस वजह से उन्हें इसका साथ नहीं मिला। सर्वे और एग्जिट पोल के बड़े खुलासे के साथ पूरा विश्लेषण पढ़ें।
मुस्लिम और OBC वोटरों के रवैये का खुलासा: क्यों महागठबंधन रहा पीछे?

मुस्लिम-OBC वोटरों के रुझान को लेकर हालिया सर्वे और एग्जिट पोल में कई अहम खुलासे हुए हैं। 2025 के विधानसभा चुनाव में इन समाजों का समर्थन किसे मिला, महागठबंधन (MGB) को अपेक्षित वोट क्यों नहीं मिला—इन सब पहलुओं का विस्तार से विश्लेषण नीचे दिया गया है।
मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन किसे मिला?
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल और सर्वे के अनुसार, मुस्लिम मतदाताओं ने भारी संख्या में महागठबंधन (MGB) या विपक्षी दलों का समर्थन किया। लगभग 78% मुस्लिम वोटर महागठबंधन के समर्थन में मतदान करते नजर आए, जबकि NDA को केवल 10% मुस्लिम वोट ही मिला। जन सुराज पार्टी को 4% और अन्य को 8% मुस्लिम वोटर मिले।
ओबीसी वोटर किसके पक्ष में झुके?
- सर्वे के मुताबिक, ओबीसी समुदाय का वोट बैंक विभाजित रहा।
- इसमें यादव समुदाय का बड़ा हिस्सा आज भी महागठबंधन के साथ दिखा,
- लेकिन गैर-यादव ओबीसी—खासकर कोइरी, कुर्मी और कुछ अन्य जातियां—
- बड़े पैमाने पर NDA की ओर झुकीं।
- एग्जिट पोल में करीब 51% ओबीसी मतदाताओं ने NDA को वोट दिया,
- जबकि महागठबंधन को अपेक्षाकृत कम समर्थन मिला।
मुस्लिम-OBC गठजोड़ क्यों नहीं बन सका?
मुस्लिम और ओबीसी समुदाय का पहले महागठबंधन (खासकर RJD) में पारंपरिक गठजोड़ रहा है, जिसे MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण भी कहते हैं। बावजूद इसके, महागठबंधन इन दोनों वर्गों को पूरी तरह एकजुट नहीं रख पाया। इसके मुख्य कारण:
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी: मुस्लिम समाज को टिकट और नेतृत्व के स्तर पर अपेक्षित भागीदारी नहीं मिली। RJD, कांग्रेस समेत दलों ने 2025 में मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या तो बढ़ाई, लेकिन वह सत्ता में भागीदारी बढ़ाने में संकोच करते दिखे, जिससे असंतोष पैदा हुआ। 17-18% मुस्लिम आबादी के बावजूद उनकी विधानसभा में हिस्सेदारी 8% से भी कम रही।
- डिप्टी सीएम पद का वादा न होना:
- महागठबंधन ने मुस्लिम विधायक को उपमुख्यमंत्री जैसे बड़े पद का वादा नहीं किया। इससे समुदाय में नाराजगी फैली और AIMIM जैसे नेता इसे सिर्फ “वोट बैंक” मानने का आरोप लगा रहे हैं। यदि दो डिप्टी सीएम का राजस्थान मॉडल लागू होता तो मुस्लिम मतदाताओं का उत्साह बढ़ता, लेकिन यह अवसर गंवा दिया गया।
- जातिगत समीकरण रणनीति:
- महागठबंधन ने जातिगत संतुलन (खासकर, ईबीसी और दलित समुदाय) की राजनीति को मुंबई प्राथमिकता दी। दलों को डर था कि मुस्लिम को बड़ा पद देने से “मुस्लिम-तुष्टिकरण” का नैरेटिव अपनाकर बीजेपी हिंदू वोटों को एकजुट कर सकती है, जिससे विपरीत ध्रुवीकरण हो सकता है।
- OBC वोट में विभाजन:
- गैर-यादव ओबीसी मतदाता NDA के पाले में झुक गए, जबकि यादव वोट मुख्यतः महागठबंधन के खाते में गए।
- पिछले चुनाव के अनुभव से ये भी सीख मिली कि इस बंटवारे से विपक्षी गठबंधन को नुकसान होता है।
मुस्लिम-OBC वोट में बिखराव के परिणाम
इन कारणों से महागठबंधन MY समीकरण को पूरी तरह एकजुट नहीं कर पाया:
- मुस्लिमों के एक हिस्से में टिकट बंटवारे और सत्तासाझेदारी में लगातार कंजूसी को लेकर असंतोष
- डिप्टी सीएम या बड़े पद की मांग को नज़रअंदाज करने से समुदाय के भीतर मोहभंग और विरोध बढ़ा
- गैर-यादव ओबीसी (जैसे कोइरी, कुर्मी) को महागठबंधन में अपेक्षित प्रतिनिधित्व न मिल पाना
- AIMIM जैसी पार्टियों की सक्रियता से सीमांचल के मुस्लिम वोटों का बंटवारा
- ईबीसी, दलित और गैर-Yadav OBC वोटरों का NDA के पाले में जाना
निष्कर्ष
- संक्षेप में, 2025 के चुनाव में मुस्लिम वोटर भारी संख्या में MGB (महागठबंधन) के साथ जरूर रहे,
- लेकिन प्रतिनिधित्व और सत्ता की हिस्सेदारी न मिलने,
- और NDA की ओबीसी राजनीति के कारण महागठबंधन दोनों सामाजिक समूहों को
- निर्णायक रूप से एकजुट नहीं कर सका। ओबीसी खासतौर पर विभाजित रहे,
- जिससे जीत का गणित पलट गया और यह सर्वे और एग्जिट पोल के बड़े खुलासों में से एक रहा।











