हजारों महफिलें हैं और लाखों मेले हैं पर जहाँ तुम नहीं वहाँ हम अकेले हैं

तन्हाई रही साथ ता-जिंदगी मेरे शिकवा नहीं कि कोई साथ न रहा

तन्हा रातें कुछ इस तरह से डराने लगी मुझे मैं आज अपने पैरों की आहट से डर गया

ख्वाहिशों की पोटली सिर लिए चल रहा हूँ मैं अकेला ही अपनी मंज़िल की और चल रहा हूँ

वो तस्वीर लाखो रुपे मे बिक गई यारो, जिसमे रोटी को तरसा बच्चा उदास बैठा था

इत्र से कपड़ो का महकना कोई बड़ी बात नही, मजा तो तब है जब खुशबू किरदार से आए

खुद में झांकने के लिए जिगर चाहिए साहब, दूसरों को जलील करने में तो हर शख्स माहिर है