शहर ज़ालिमों का है साहब जरा संभल कर चलना यहां सीने से लगाकर लोग दिल निकाल लेते है
अपना बनाकर फिर कुछ दिनों में बेगाना कर दिया भर गया दिल तो मजबूरी का बहाना कर दिया
मैं जिसकी मुस्कुराहटो पे जीती मरती थी वही बिछड़ के कह रहा है तुम तो खुश हो ना
खामोश चेहरे पर लाखो पहरे होते है हसती हुई आँखों में जख्म बड़े गहरे होते है
किस्मत ही कुछ एसी थी कि चैन से जीने कि हिम्मत न हुई जिसको चाहा वो मिला नही जो मिला उससे मोहब्बत न हुई