जिन्दगी मे और कुछ मेरा हो या ना हो लेकिन गलती हमेसा मेरी ही होती है

बहुत ख़ुश हूं मै अपने अकेलेपन से क्योंकि उन महफिलों से तो अच्छा है मेरा अकेलापन जहां सब अपने होकर भी अपने नहीं है

नफरत सी हो गई है इस जिंदगी से अब बस आखिरी दिन का इंतजार है

खुद से ज्यादा कोई और नहीं समझ सकता खुद का दर्द

वो दिन नहीं वो रात नहीं वो पहले जैसे जज़्बात नहीं होने को तो हो जाती है बात अब भी मगर इन बातों में वो बात नही