मन मेरा बेचैन सा है, ना जाने क्यों ये खुदसे ही खफा सा है

किसी को मुफ्त में मिल गया वो सख्श, जो हर कीमत पर मुझे चाहिए था

बहुत कुछ छोड़ा है तेरे भरोसे ए वक्त, बस तू दगाबाज ना निकलना

बात बस नजरिए की है, काफी अकेला हु या, अकेला काफी हु

फुर्सत मिले तो उनका हाल भी पूछ लिया करो मोहतरमा, जिनके सीने में दिल की जगह तुम धड़कते हो

अगर वो सख्श एक बार मेरा हो जाता, मैं दुनियां की किताबो से हर्फ-ए-बेवफाई मिटा देता

बर्बाद बस्तियों में तुम किसे ढूंढते हो, उजड़े हुए लोगों के ठिकाने नहीं होते