Roza rakhne ki niyat : रोज़ा रखने की सही नियत क्या है? जानिए रोज़ा करने की सही विधि और नीयत का महत्व। इस पोस्ट में पढ़ें कि रोज़ा की नीयत कब और कैसे करें, सहरी की दुआ, और रोज़ा को स्वीकार्य बनाने के लिए जरूरी बातें। अल्लाह की खुशी के लिए सही नियत से रोज़ा रखना सीखें।
रोज़ा रखने की सही नीयत क्या है पूरी जानकारी!
इस्लाम धर्म में रोज़ा रखना एक पवित्र इबादत है जो रमज़ान के महीने में मुसलमानों के लिए अनिवार्य होती है। रोज़ा सिर्फ भूखा-प्यासा रहना नहीं है, बल्कि यह अल्लाह की खुशी के लिए खुद को संयमित करने और आध्यात्मिक रूप से खुद को मजबूत बनाने का माध्यम है। रोज़ा रखने की नीयत (इरादा) इस पूरे उपवास का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होती है क्योंकि बिना सही नीयत के रोज़ा अधूरा माना जाता है।

रोज़ा रखने की नीयत का महत्व
इस्लाम में हर इबादत की शुरुआत एक सच्चे और स्पष्ट इरादे से होती है, जिसे नीयत कहा जाता है। पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा है कि “अमल का लाभ उस व्यक्ति के इरादे के अनुसार होता है”। इसका मतलब है कि रोज़ा रखने का प्राथमिक उद्देश्य अल्लाह की رضا के लिए होना चाहिए। नीयत मन और दिल की वह स्थिर इच्छा है जो उपवास को केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अभ्यास बनाती है।
रोज़ा रखने की सही नीयत कैसे करें?
रोज़ा की नीयत सुबह यानी फज्र की अजान से पहले की जाती है। यह नीयत दिल से की जाए, सिर्फ दिमाग से या जबान से दोहराना जरूरी नहीं, लेकिन जबान से नीयत पढ़ना ज्यादा बेहतर माना जाता है। नीयत के लिए एक खास दुआ या कहावत का इस्तेमाल किया जाता है जो अरबी, हिंदी या अपनी भाषा में हो सकती है, जैसे:
अरबी में नीयत:
“व बि सोमि गदिन नवई तु मिन शहरि रमज़ान”
(इसका अर्थ है – मैं रमजान के इस रोज़े के लिए रख रहा हूँ।)
नीयत कब करें?
नीयत रोज़ाना सुबह फज्र की अजान से पहले होनी चाहिए।
यदि रात में भी नीयत कर ली जाए तो चलती है
लेकिन प्रत्येक रोज़े की नीयत रोजाना कर लेना जरूरी है।
रोज़ा रखने के साथ ध्यान देने योग्य बातें!
रोज़ा अल्लाह (SWT) की खुशी के लिए रखा जाता है, न कि किसी दिखावे या सामाजिक कारण से।
#रोज़ा रखने के दौरान नफ़्सानी इच्छाओं को नियंत्रण में रखना चाहिए, जैसे गुस्सा न करना, झूठ न बोलना आदि।
रोज़ा न केवल खाने-पीने से परहेज है, बल्कि यह आत्मा को भी शुद्ध करने का तरीका है।
रोज़ा की दुआ
#रोज़ा शुरू करने के लिए सहरी के वक्त (सुबह खाने के बाद, फज्र से पहले) एक विशेष दुआ पढ़ी जाती है
जो नीयत का प्रमाण होती है। इसके बिना भी रोज़ा रखा जा सकता है
लेकिन दुआ के साथ रोज़ा की शुरुआत करना नफ्क़ती और आध्यात्मिक लाभ देता है।
रोज़ा रखने की नियत का सही होना इस बात की गारंटी है कि रोज़ा अल्लाह के सामने स्वीकार होगा।
इसीलिए रोज़ा रखनें वालों को चाहिए कि वे मन, दिल और जुबान से ईमानदारी के साथ अपनी नीयत करें
और इस पवित्र इबादत को पूरी श्रद्धा के साथ अदा करें।
इसी से रोज़ा पूरी तरह से फलदायक और पाक माना जाएगा।












