होली की कहानी: हिरण्यकश्यप प्रह्लाद और होलिका का अद्भुत प्रसंग!
March 11, 2025 2025-03-11 15:30होली की कहानी: हिरण्यकश्यप प्रह्लाद और होलिका का अद्भुत प्रसंग!
होली की कहानी: हिरण्यकश्यप प्रह्लाद और होलिका का अद्भुत प्रसंग!
होली की कहानी : होली केवल रंगों और उमंग का त्यौहार नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक महत्वपूर्ण पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है
जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह कथा भक्त प्रह्लाद, अहंकारी राजा हिरण्यकश्यप और उसकी
बहन होलिका से संबंधित है। इस प्रसंग में छिपा संदेश आज भी हमें सत्य और भक्ति की राह पर चलने की प्रेरणा देता है।
हिरण्यकश्यप का अहंकार

पुराणों के अनुसार, प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक असुर राजा था।
वह इतना शक्तिशाली था कि उसने घोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर लिया
कि उसे न कोई देवता, न कोई मनुष्य, न दिन में, न रात में, न घर के भीतर न बाहर न किसी
हथियार से, न आकाश में और न धरती पर मारा जा सकता है।
इस वरदान के कारण वह अजेय बन गया और स्वयं को भगवान मानने लगा।
हिरण्यकश्यप चाहता था कि उसके राज्य में केवल उसी की पूजा की जाए और कोई भी
विष्णु भगवान की आराधना न करे। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का
परम भक्त था। वह हर समय ‘नारायण-नारायण’ का जाप करता और भगवान विष्णु की स्तुति करता।
यह देखकर हिरण्यकश्यप बहुत क्रोधित हुआ और उसने अपने पुत्र को विष्णु
भक्ति से रोकने के कई प्रयास किए, लेकिन प्रह्लाद अपनी भक्ति से पीछे नहीं हटा।
प्रह्लाद की भक्ति की परीक्षा
हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए कई कठोर उपाय किए:
ऊँचाई से फेंकना – प्रह्लाद को पहाड़ से गिराया गया, लेकिन वह सुरक्षित रहा।
जहरीले सांपों के बीच डालना – विषधर नागों के बीच रखा गया लेकिन नागों ने उसे नहीं काटा।
हाथियों के पैरों तले कुचलवाने की कोशिश – विशाल हाथियों को उसके ऊपर छोड़ दिया गया लेकिन वे भी उसे नुकसान नहीं पहुँचा सके।
जहर पिलाने का प्रयास – प्रह्लाद को विष दिया गया लेकिन वह भी अमृत बन गया।
हर बार भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की। यह देखकर हिरण्यकश्यप और अधिक क्रोधित हो गया।
होलिका दहन की कथा
आखिरकार, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी होलिका को वरदान प्राप्त था
कि वह आग में नहीं जल सकती उसने योजना बनाई कि वह प्रह्लाद को गोद
में लेकर अग्नि में बैठेगी, जिससे प्रह्लाद जल जाएगा और वह स्वयं बच जाएगी।
लेकिन भगवान की कृपा से उलटा ही हुआ जैसे ही होलिका आग में बैठी, उसकी
शक्ति समाप्त हो गई और वह जलकर भस्म हो गई, जबकि प्रह्लाद सकुशल बाहर निकल आया।
इस घटना को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है।
नरसिंह अवतार और हिरण्यकश्यप का अंत
इसके बाद हिरण्यकश्यप स्वयं प्रह्लाद को मारने के लिए आगे बढ़ा, लेकिन तभी भगवान विष्णु
ने नरसिंह अवतार (आधा मानव और आधा सिंह) धारण किया। उन्होंने हिरण्यकश्यप को
न दिन में, न रात में, न घर के भीतर, न बाहर, न किसी हथियार से, बल्कि अपने नाखूनों से
अपने घुटनों पर रखकर मार डाला। इस तरह, अधर्म और अहंकार का अंत हुआ और धर्म की विजय हुई।
होली का महत्व
इस प्रसंग की याद में होली का त्यौहार मनाया जाता है होली से एक दिन पहले ‘होलिका दहन’ किया जाता है
जो यह दर्शाता है कि अहंकार अन्याय और अत्याचार का अंत निश्चित होता है।
अगले दिन रंगों की होली मनाई जाती है, जो प्रेम, भाईचारे और आनंद का प्रतीक है।
होलिका, हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की यह कथा हमें यह सिखाती है
कि सच्चाई और भक्ति की हमेशा विजय होती है। चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ
अगर हमारा विश्वास अडिग है, तो ईश्वर सदैव हमारी रक्षा करते हैं। इसी कारण होली न केवल
एक त्यौहार बल्कि जीवन में नैतिकता और भक्ति की जीत का प्रतीक भी है।