दिल्ली कोर्ट सोनिया गांधी : भारतीय राजनीति में एक बार फिर सोनिया गांधी का नाम विवादों के केंद्र में आ गया है। दिल्ली की एक अदालत ने सोनिया गांधी को नोटिस जारी किया है, जिसमें उनकी भारतीय नागरिकता हासिल करने से पहले ही वोटर रोल में नाम शामिल करने के आरोप लगाए गए हैं। याचिका में FIR दर्ज करने की मांग की गई है, जो भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 (धोखाधड़ी) और 468 (जालसाजी) के तहत है। यह मामला न केवल कानूनी है, बल्कि राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील है, क्योंकि यह कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और गांधी परिवार की प्रमुख सदस्य को निशाना बना रहा है। क्या यह राजनीतिक साजिश है या कानूनी सच्चाई? आइए, इस पूरे विवाद को विस्तार से समझते हैं।
याचिका का पूरा मामला: क्या हैं मुख्य आरोप?
यह याचिका बीजेपी नेता और वकील मकरंद परांजपे ने दायर की है। उनका दावा है कि सोनिया गांधी, जो मूल रूप से इटली की नागरिक थीं, ने 1968 में भारत आकर राजीव गांधी से शादी की। लेकिन भारतीय नागरिकता उन्हें 30 अप्रैल 1973 को मिली। याचिकाकर्ता का कहना है कि 1969 में ही दिल्ली के वोटर रोल में उनका नाम जोड़ा गया, जो तत्कालीन कानूनों के खिलाफ था। उस समय विदेशी पत्नी को नागरिकता मिलने के बाद ही वोटिंग राइट्स मिलते थे।

मकरंद परांजपे ने अदालत में दलील दी कि यह धोखाधड़ी का मामला है, क्योंकि सोनिया गांधी ने गलत जानकारी देकर वोटर आईडी हासिल की। याचिका में चुनाव आयोग, दिल्ली सरकार और सोनिया गांधी को पक्षकार बनाया गया है। कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए सभी पक्षों से 15 दिसंबर तक जवाब मांगा है। अगर आरोप साबित हुए, तो सोनिया गांधी की वोटिंग हिस्ट्री और राजनीतिक करियर पर सवाल उठ सकते हैं। यह मामला RTI दस्तावेजों पर आधारित है, जो परांजपे ने 2024 में प्राप्त किए थे।
कानूनी पृष्ठभूमि: वोटर रोल और नागरिकता के नियम
भारतीय संविधान के अनुसार, वोटर बनने के लिए व्यक्ति को भारतीय नागरिक होना अनिवार्य है। सिटिजनशिप एक्ट 1955 के तहत, विदेशी मूल की महिलाओं को शादी के बाद नागरिकता मिल सकती है, लेकिन प्रक्रिया पूरी होने तक वोटिंग राइट्स नहीं। सोनिया गांधी ने 1973 में नागरिकता ली, लेकिन याचिका का दावा है कि 1969 से ही वे वोटर लिस्ट में थीं। यह पहला ऐसा मामला नहीं है – 2004 में भी सोनिया गांधी की नागरिकता पर BJP ने सवाल उठाए थे, जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ दिया था।
वर्तमान में, चुनाव आयोग (ECI) वोटर लिस्ट की जांच करता है, लेकिन पुराने मामलों में RTI के जरिए ही सच्चाई सामने आती है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कोर्ट FIR का आदेश देता है, तो CBI या दिल्ली पुलिस जांच करेगी। यह मामला लोकसभा चुनाव 2024 के बाद फिर से गरमाया है, जब विपक्ष ने EVM और वोटर लिस्ट पर सवाल उठाए थे।
राजनीतिक प्रभाव: कांग्रेस vs BJP का नया दौर?
यह नोटिस राजनीतिक हलकों में भूचाल ला रहा है। कांग्रेस ने इसे “राजनीतिक साजिश” करार दिया है, जबकि BJP इसे “कानूनी कार्रवाई” बता रही है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, “यह BJP की हताशा का नतीजा है। सोनिया जी ने देश के लिए बलिदान दिया है।” वहीं, BJP प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्वीट किया: “सच्चाई सामने आनी चाहिए। कोई भी कानून से ऊपर नहीं।”
- सोनिया गांधी, जो 2022 से कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं, इस विवाद से प्रभावित हो सकती हैं।
- 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद राहुल गांधी सक्रिय हैं, लेकिन सोनिया का प्रभाव बरकरार है।
- अगर मामला आगे बढ़ा, तो यह 2029 चुनावों से पहले कांग्रेस को कमजोर कर सकता है।
- विपक्षी दलों ने भी समर्थन जताया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट जाने की संभावना है।
तुलनात्मक नजरिया: पिछले विवादों से तुलना
| विवाद | वर्ष | मुख्य मुद्दा | परिणाम |
|---|---|---|---|
| नागरिकता विवाद | 2004 | विदेशी मूल पर सवाल | पद छोड़ा, लेकिन कोई FIR नहीं |
| वोटर लिस्ट आरोप | 2025 | 1969 में नाम जोड़ना | कोर्ट नोटिस जारी, FIR मांग |
| राष्ट्रीय सुरक्षा | 2019 | राफेल डील | CBI जांच, लेकिन क्लोज |
यह तालिका दिखाती है कि सोनिया गांधी पर हमले पुराने हैं, लेकिन यह पहली बार है जब वोटर रोल पर सीधा हमला हो रहा है।
विशेषज्ञों की राय: क्या होगा अगला कदम?
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि कोर्ट FIR से पहले दस्तावेजों की जांच करेगा। अगर साबित हुआ, तो IPC के तहत 7 साल की सजा हो सकती है। लेकिन राजनीतिक दबाव में मामला सुलझ सकता है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा, “ECI को पुरानी लिस्ट की ऑडिट करनी चाहिए।” सोशल मीडिया पर #SoniaGandhiVoterScam ट्रेंड कर रहा है, जहां मीम्स और बहस छिड़ी हुई है।
लोकतंत्र में पारदर्शिता जरूरी
सोनिया गांधी पर यह नोटिस भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का परीक्षण है। चाहे राजनीतिक हो या कानूनी, सच्चाई सामने आनी चाहिए। क्या यह BJP की रणनीति है या वास्तविक अनियमितता? समय बताएगा। लेकिन एक बात साफ है – वोटर लिस्ट की शुद्धता हर नागरिक का अधिकार है। आपकी क्या राय है? कमेंट्स में बताएं कि क्या कोर्ट को FIR का आदेश देना चाहिए।







