आंध्र प्रदेश मंदिर : सिंहाचलम मंदिर (Simhachalam Temple) आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम (विजाग) शहर के पास स्थित एक प्राचीन और प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है, जो भगवान विष्णु के वराह-नरसिंह अवतार को समर्पित है। यह मंदिर सिंहाचलम पहाड़ी पर समुद्र तल से लगभग 800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और घने हरियाली से घिरा हुआ है!
पौराणिक कथा और इतिहास

इस मंदिर की स्थापना का श्रेय भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को दिया जाता है। कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और उसके बाद प्रह्लाद ने ही इस पर्वत पर भगवान नरसिंह का मंदिर बनवाया था!
समय के साथ यह मंदिर लुप्त हो गया था, लेकिन स्थल पुराण के अनुसार, लुनार वंश के राजा पुरुरवा और उनकी पत्नी उर्वशी ने एक दिव्य प्रेरणा से इस मूर्ति को धरती से निकालकर, देववाणी के अनुसार, चंदन के लेप से ढंककर पुनः स्थापित किया!
मंदिर की वर्तमान संरचना का अधिकांश हिस्सा 11वीं-13वीं शताब्दी के पूर्वी गंगा राजवंश और बाद में विजयनगर के राजाओं द्वारा विकसित किया गया!
मंदिर की विशेषताएं!
देवता का स्वरूप: यहाँ भगवान विष्णु के वराह (सूअर) और नरसिंह (मानव-सिंह) अवतार के संयुक्त रूप की पूजा होती है, जिसे “वराह लक्ष्मी नरसिंह” कहा जाता है। यह देश का एकमात्र प्रमुख मंदिर है जहाँ इस संयुक्त रूप की पूजा होती है!
चंदन लेप की परंपरा: भगवान की मूर्ति सालभर चंदन के लेप से ढकी रहती है
जिससे वह शिवलिंग जैसी प्रतीत होती है। केवल अक्षय तृतीया के दिन
चंदन का लेप हटाया जाता है और भक्तों को मूल स्वरूप के दर्शन होते हैं!
वास्तुकला: मंदिर की वास्तुकला में कलिंग, चालुक्य और द्रविड़ शैलियों का सुंदर
मिश्रण देखने को मिलता है। इसमें भव्य गोपुरम, 16 स्तंभों वाला मंडप (मुखमंडपन)
और 96 स्तंभों वाला नाट्यमंडपम है, जिन पर पुराणों की कथाएँ उकेरी गई हैं!
स्थान: मंदिर विशाखापत्तनम से लगभग 16-25 किलोमीटर दूर, सिंहाचलम पहाड़ी पर स्थित है
जहाँ से शहर और समुद्र का सुंदर दृश्य दिखाई देता है!
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व
सिंहाचलम मंदिर को भगवान नरसिंह का निवास स्थान माना जाता है
और यह दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है!
यहाँ प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु अक्षय तृतीया के दिन ‘चंदनोत्सवम’ के
अवसर पर भगवान के वास्तविक स्वरूप के दर्शन के लिए आते हैं!
सिंहाचलम मंदिर अपनी प्राचीनता, पौराणिकता, अद्वितीय परंपराओं और भव्य वास्तुकला
के लिए जाना जाता है। यह न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है
बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।