Sheetal Devi: शीतल देवी की असाधारण सफलता की कहानी पढ़ें, जिन्होंने जन्म से दोनों हाथ न होने के बावजूद पैरा तीरंदाजी में भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गौरवान्वित किया। जानें उनके बचपन के संघर्ष, खेल में आने का सफर, एशियन पैरा गेम्स और पैरालंपिक में शानदार उपलब्धियां, अर्जुन अवॉर्ड और लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बनने की पूरी दास्तान। शीतल देवी की कहानी आपके जीवन में भी उम्मीद और जज़्बे की नई रोशनी जगा देगी।
Sheetal Devi: हौसले की मिसाल, बिना हाथों के बनीं दुनिया की सबसे खास तीरंदाज

अगर कभी आपको लगे कि हालात मुश्किल हैं या सपने पूरे नहीं हो सकते, तो शीतल देवी की कहानी जरूर पढ़िए। जम्मू-कश्मीर के छोटे से गांव किश्तवाड़ की शीतल देवी ने दुनिया
शुरुआती जीवन और चुनौतियां
शीतल देवी का जन्म 10 जनवरी 2007 को जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के लोइधर गांव में हुआ था। उनके पिता किसान हैं और मां बकरियां चराती हैं। शीतल जन्म से ही फोकोमेलिया नाम की दुर्लभ बीमारी से पीड़ित थीं, जिससे उनके दोनों हाथ नहीं हैं। लेकिन शीतल ने कभी अपनी इस कमी को अपनी ताकत बनने से नहीं रोका।
कैसे बनीं तीरंदाज?
शीतल बचपन से ही बहुत एक्टिव थीं।
वह पेड़ों पर चढ़ती थीं और अपने पैरों का इस्तेमाल बड़ी कुशलता से करती थीं।
2019 में भारतीय सेना द्वारा आयोजित एक यूथ इवेंट में उनकी प्रतिभा को पहचाना गया।
सेना के कोचों ने शीतल की एथलेटिक क्षमता और आत्मविश्वास देखकर उन्हें तीरंदाजी में ट्राई करने के लिए प्रेरित किया।
शुरुआत में कोचों ने कृत्रिम हाथों से मदद करने की कोशिश की,
लेकिन डॉक्टरों ने बताया कि यह संभव नहीं है।
इसके बाद शीतल ने पैरों से तीरंदाजी सीखनी शुरू की।
उन्होंने अमेरिकी पैरा-आर्चर मैट स्टुट्जमैन से प्रेरणा ली, जो पैरों से तीरंदाजी करते हैं।
उपलब्धियां और रिकॉर्ड
- शीतल देवी दुनिया की पहली और एकमात्र सक्रिय महिला तीरंदाज हैं, जो बिना हाथों के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करती हैं।
- उन्होंने 2022 एशियन पैरा गेम्स में दो गोल्ड और एक सिल्वर मेडल जीते।
- 2023 में वर्ल्ड पैरा आर्चरी चैंपियनशिप में रजत पदक जीता और भारत के लिए पेरिस पैरालंपिक 2024 का कोटा हासिल किया।
- पेरिस 2024 पैरालंपिक में शीतल ने मिक्स्ड टीम कंपाउंड इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर भारत की सबसे कम उम्र की पैरालंपिक मेडलिस्ट बनने का गौरव हासिल किया।
- उन्हें 2023 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
- 2024 में बीबीसी इमर्जिंग एथलीट ऑफ द ईयर अवॉर्ड भी जीता।
प्रेरणा और संदेश
शीतल देवी की कहानी बताती है कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें क्यों न हों,
अगर आत्मविश्वास और मेहनत हो तो कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है।
शीतल ने अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना लिया और आज वह लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं।
शीतल देवी न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा हैं।
उन्होंने साबित कर दिया कि असंभव कुछ भी नहीं।
उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि हालात चाहे जैसे भी हों,
हौसला और मेहनत से हर मंज़िल पाई जा सकती है।