नफ़रतों के शहर में अकेला सा हूँ मैं मुझे अच्छे लोगों कि नहीं अच्छे वक़्त कि तलाश है

कैसे गुजरती है मेरी हर एक शाम, तुम्हारे बगैर अगर तुम देख लेते तो, कभी तन्हा न छोड़ते मुझे

बर्बादियों का हसीन एक मेला हूँ मैं सबके रहते हुए भी बहुत अकेला हूँ मैं

जहां महफ़िल सजी हो वह मेला होता है जिसका दिल टूटा हो वो तन्हा अकेला होता है

जहां महफ़िल सजी हो वह मेला होता है जिसका दिल टूटा हो वो तन्हा अकेला होता है