शत-शत दीप इकट्ठे होंगे अपनी-अपनी चमक लिए, अपने-अपने त्याग, तपस्या, श्रम, संयम की दमक लिए।

जलती बाती मुक्त कहाती दाह बना कब किसको बंधन रात अभी आधी बाकी है मत बुझना मेरे दीपक मन

सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या

था इंतिज़ार मनाएँगे मिल के दीवाली न तुम ही लौट के आए न वक़्त-ए-शाम हुआ

आज की रात दिवाली है दिए रौशन हैं आज की रात ये लगता है मैं सो सकता हूँ