बिछड़ा है यादों से वो लम्हा, बातें दिल की अब बनीं खामोशियाँ। ज़िन्दगी भर का साथ था उसका, पर क्यों अब लगता है तन्हाई मेरी यहाँ।

खुशियों की क़ायनात बन गयी धूल, ग़मों का समंदर मेरे दिल में है छूल। जीना सिखा दिया उसने ज़िंदगी को, पर अब तो जीने की चाहत भी है फिरौती का तूल।

कहना चाहता हूँ दर्द को अपनी जुबान से, पर शब्दों में कैसे छुपाऊं उस दर्द की पहचान से। रोज़ मौत की दहलीज़ पर खड़ा हूँ मैं, पर क्यों उम्मीदों का जंजीर बाँधा है अपनी जान से।

दिल के अरमान लिख रहे हैं ज़िन्दगी की कहानी, खोया हुआ इश्क़ धूंधते हैं तन्हाई की रातों में।

रुलाते हैं ख्वाब जब तक़दीर से बिछड़ जाते हैं, हर चीरा दिल को गहरी दर्द और तकलीफ़ देते हैं।