बिछड़ा है यादों से वो लम्हा, बातें दिल की अब बनीं खामोशियाँ। ज़िन्दगी भर का साथ था उसका, पर क्यों अब लगता है तन्हाई मेरी यहाँ।
कहना चाहता हूँ दर्द को अपनी जुबान से, पर शब्दों में कैसे छुपाऊं उस दर्द की पहचान से। रोज़ मौत की दहलीज़ पर खड़ा हूँ मैं, पर क्यों उम्मीदों का जंजीर बाँधा है अपनी जान से।