मेले में गर नज़र न आता रूप किसी मतवाली का फीका फीका रह जाता त्यौहार भी इस दीवाली का

राहों में जान घर में चराग़ों से शान है दीपावली से आज ज़मीन आसमान है

प्यार की जोत से घर घर है चराग़ाँ वर्ना एक भी शम्अ न रौशन हो हवा के डर से

वो दिन भी हाए क्या दिन थे जब अपना भी तअल्लुक़ था दशहरे से दिवाली से बसंतों से बहारों से

जो सुनते हैं कि तिरे शहर में दसहरा है हम अपने घर में दिवाली सजाने लगते हैं